शनिवार, अगस्त 03, 2013

गधे की मजार

एक फकीर किसी बंजारे की सेवा से बहुत प्रसन्‍न हो गया। और उस बंजारे को उसने एक गधा भेंट किया। बंजारा बड़ा प्रसन्‍न था गधे के साथ। अब उसे पेदल यात्रा न करनी पड़ती थी। सामान भी अपने कंधे पर न ढोना पड़ता था। और गधा बड़ा स्‍वामीभक्‍त था। 

लेकिन एक यात्रा पर गधा अचानक बीमार पडा और मर गया। दुःख में उसने उसकी कब्र बनायी, और कब्र के पास बैठकर रो रहा था कि एक राहगीर गुजरा। उस राहगीर ने सोचा कि जरूर किसी महान आत्‍मा की मृत्‍यु हो गयी है। तो वह भी झुका कब्र के पास। इसके पहले कि बंजारा कुछ कहे, उसने कुछ रूपये कब्र पर चढ़ाये। बंजारे को हंसी भी आई आयी। लेकिन तब तक भले आदमी की श्रद्धा को तोड़ना भी ठीक मालुम न पडा। और उसे यह भी समझ में आ गया कि यह बड़ा उपयोगी व्‍यवसाय है। 

फिर उसी कब्र के पास बैठकर रोता, यही उसका धंधा हो गया। लोग आते, गांव-गांव खबर फैल गयी कि किसी महान आत्‍मा की मृत्‍यु हो गयी। और गधे की कब्र किसी पहूंचे हुए फकीर की समाधि बन गयी। ऐसे वर्ष बीते, वह बंजारा बहुत धनी हो गया। 

फिर एक दिन जिस सूफी साधु ने उसे यह गधा भेंट किया था। वह भी यात्रा पर था और उस गांव के करीब से गुजरा। उसे भी लोगों ने कहा, "एक महान आत्‍मा की कब्र है यहां, दर्शन किये बिना मत चले जाना।" 


वह गया देखा उसने इस बंजारे को बैठा, तो उसने पूछा - "किसकी कब्र है यहा, और तू यहां बैठा क्‍यों रो रहा है ?"  
उस बंजारे ने कहां, "अब आप से क्‍या छिपाना, जो गधा आप ने दिया था। उसी की कब्र है। जीते जी भी उसने बड़ा साथ दिया और मर कर और ज्‍यादा साथ दे रहा है।" 

सुनते ही फकीर खिल खिलाकर हंसाने लगा। उस बंजारे ने पूछा - "आप हंसे क्‍यों ?" 

फकीर ने कहां - "तुम्‍हें पता है। जिस गांव में मैं रहता हूं वहां भी एक पहूंचे हएं महात्‍मा की कब्र है। उसी से तो मेरा काम चलता है।" 

बंजारे ने पूछा - "वह किस महात्‍मा की कब्र है ?" 

फकीर ने जवाब दिया- "वह इसी गधे की मां की कब्र है।"  


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धर्म के नाम पर अंधविश्‍वासों का, व्यर्थ के क्रियाकांड़ो, यज्ञों, हवनों का बड़ा विस्‍तार है। फिर जो परंपरा एक बार चल पड़ी, उसे हटाना मुश्‍किल हो जाता है। जो बात लोगों के मन में बैठ गयी। उसे मिटाना मुश्‍किल हो जाता है।
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फेसबुक मित्रों द्वारा की गयीं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं
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  • सुरेश चंद्र गुप्ता 
    ऐसी कब्रें आप को जगह-जगह मिल जायेंगी. अच्छा धंधा चला रहे हैं कुछ लोग !
  • लोग भोले भाले जनता के आस्था का दुरूपयोग करते हैं और उन्हें बेवकूफ बनाकर अपना उल्लू सीधा 
    करते हैं, इसमें तनिक भी संदेह नही है | एक अच्छी कहानी के लिए धन्यवाद |
  • देखा देखी पाप और देखा देखी धर्म कर्म करना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है।
  • प्रकाश गोविंद जी लाजवाब कमाल कर दिया धन्यवाद आपको !
  • Bahut-bahut shukira Sir ! Kmaal ka message hai hamare liye jo is tarah Andhvishwas 
    karte hain.
  • Pakhandon par prahaar karti Sundar katha ...
  • sachmuch yahi hota h duniya men.
  • Amit Mishra 
    exactly, i m agreed this !
  • Ohh My God !!   ...  kya sahi baat likhi hai aapne .. waah
  • Rosey Insan 
    it happens only in INDIA...
  • is katha ke madhyam se andhvishwas par zabardast kataksh...
  • Pk Shrivastava 
    Pakhandon par prahaar karti Sundar katha.
  • Shrish Benjwal Sharma
    ऐसे अनेक गधों की कब्रें पीर-मजार के तौर पर चल रही हैं।
  • सच है यहाँ गधों को ही पूजा जा रहा है और यही गधा जब कब्र में चला जाता है तो और महत्वपूर्ण हो 
    जाता हैं , इसको कहते हैं गधा पच्चीसी !
  • kota me dre ke pas ek kutte kaa majaar hai jabki aerodram kshetr me ghode vaale baaba 
    kaa naam hai.
  • laajawaab ................. 
  • धर्म ब्यवसाइयों पर ब्यंग करती सुन्दर रचना प्रकाश जी !
  • Tiwari Pratibha 
    Nice story.........like this nice quote.
  • Akram Khan 
    aap ne sahi farmaya janaab. agree with u
  • Rajendra Singh Dogra 
    saare dharm sirf andhvishwaas hi to hain....jise aap maante hain usako chhodkar 
    dharmaavalambi bhi dusaron ki aastha ko andh vishwaas hi samjhate hain.... then why 
    to discriminate.... all are only Andh-Vishwaas......
  • हर चीज के कई अन्य पहलू भी होते हैं ... ऐसी कब्रें-दरगाहें जब कहीं स्थापित होती हैं तो समाज का 
    बहुत भला होता है ! कितने ही कलाकारों जैसे तांत्रिक, बाबा, फकीर, नजूमी, चमत्कारी अंगूठी, ताबीज़, 
    लाकेट बेचने वाले, ठगी करने वाले, जेबकतरे और उचक्के बेचारों को रोज़गार मिल जाता है ! इसी बहाने 
    तमाम पुलिस भी सक्रिय रहती है वरना उनमें जंग लग जायेगी ! काला धन जमा करने वाले सेठ, उद्योगपति 
    ऐसी जगहों पर दान और चढ़ावा देकर अपने मन का बोझ लगातार कम कर लेते हैं ! आप सोचेंगे तो इस 
    तरह के अनेक और हित भी जुड़े नजर आयेंगे ... इसलिए ऐसी कब्रों का होना आवश्यक है !
  • Daya Shanker Pandey
    Yesa hi hota hai, paisa kamane ke liye thagi aur makkari ka prayog karna hai, bhakti ke 
    naam par bewkufoa ki kami nahi hai.
  • धर्म के नाम पर अंधविश्‍वासों का, व्यर्थ के क्रियाकांड़ो, यज्ञों, हवनों का बड़ा विस्‍तार है। फिर जो परंपरा 
    एक बार चल पड़ी, उसे हटाना मुश्‍किल हो जाता है। जो बात लोगों के मन में बैठ गयी। उसे मिटाना 
    मुश्‍किल हो जाता है।
  • Jayprakash Singh 
    baapu ji kehte hain ki do pair waala peer hai to chaar pair waala bada peer  hahaahhaha
  • अनूप श्रीनारायण 
    वर्तमान समय में सबसे अच्छा धंधा
  • Vishwat Sen 
    waah bahut achchha prasang hai
  • वाह क्या बात है.जय हो स्वामी गधानंद महाराज की ...
  • श्रद्धा में बहुत कुछ अतार्किक होता है । जितना अतार्किक उसकी परीक्षा किए बिना मानना है, उतना ही 
    या उससे अधिक अतार्किक उसकी परीक्षा किए बिना खारिज कर देना है । खरिज करने से पहले इतना 
    धीरज तो रखना ही चाहिए कि इसके पक्ष में जो तर्क दिए जा रहे हैं, वे कितने सत्य हैं । अपनाने के लिए 
    तो दोनो रास्ते ठीक हैं कि परीक्षा करके माने या दूसरों पर भरोसा करके बिना परीक्षा के मान ले । 
    पर खारिज करने में ऐसा ठीक नहीं । इसीलिए बिना परीक्षा खारिज को शायद अधिक अतार्किक कहा है ।
  • लोग समझना चाहते,नहीं धर्म के खेल ! काट रहे आनंद से,रूढ़ि प्रचारित जेल !!
  • Manoj Purohit 
    aaj kal har taraf yahi chal raha hai.
  • Manoj Kumar 
    वाह गजब की प्रेरक कहानी
  • Santosh Kumar 
    Interesting
  • bahut hi rochak or achha likha sir.
  • Rajesh Tiwari 
    Dunia me Moorkh kamaata hai aur Dimaagwala khaata hai.
  • Imdad Ali 
    jab tak murkh maujood hain tab tak akal waale isi tarah kamayenge.
  • bahut achha sir
  • बहुत बढ़िया है / धार्मिक अंधविश्वासों पर बेहतरीन तंज़ है / 
    जब तक दुनिया में मूर्ख रहेंगे / अक्लमंद ऐश करते रहेंगे !!
  • waaaaaaaaahhhhhhhh maza aa gaya .............
  • बहुत बढ़िया...प्रेरक रचना....
  • Raj Bhatia 
    जरुर ऎसी कब्र भारत के हर शहर मे होगी ना...
  • जी हाँ Raj Bhatia जी ..... हिंदुस्तान का कोई शहर बचा नहीं है .... मज़ार के अन्दर सोये शख्स के बारे में 
    ऐसी-ऐसी कहानियां लोग फैला देते हैं जो उस शख्स को भी पता नहीं होंगी  ... कारण सिर्फ एक ही है ... 
    "गंदा है पर धंधा है ये "
  • ख़ूबसूरत व्यंग्य.................. अच्छा लिखा है आपने.......... बहुत बहुत बधाई........
  • true...... Education is the only remedy for what ever is happening
  • धर्म का दूसरा नाम विश्वास , उम्मीद. दया भाव, सेवा , आपसी एकता, प्रेम .
    यह सब धर्म कै दूसरे नाम है......।।।
  • पी के शर्मा
    andhanukaran ka bolbala hai.
  • खुश वह भी जो गधे की कब्र से कमा रहा है, खुश वह भी है जो गधे की कब्र को किसी महात्मा की कब्र 
    मान कर पूजा कर रहा है लेकिन दुखी वे हैं जो कब्र का सत्य जानते हैं।
  • सुशील बाकलीवाल 
    शायद इसीलिये ये जुमला लगातार सुनाई देता रहता है कि धर्म आस्था का विषय है तर्क का नहीं ।
  • सुशील बाकलीवाल, यह जुमला उनके द्वारा उठाया जाता है जो दुखी होना नहीं चाहते।
  • सुशील बाकलीवाल 
    यह जुमला उनके द्वारा अधिक उठाया जाता है जिनके निजी हित आस्थाओं से जुडे होते हैं फिर चाहे वो 
    धर्म के रुप में हों या आमद के रुप में ।
  • आस्था की बात भी सबसे ज्यादा वही लोग करते हैं जो बात-बात पर विज्ञान की दुहाई देते हैं ... 
    "फलाना चीज को तो विज्ञान भी मान चुका है" 
    वैसे ये आस्था है बहुत दिलचस्प चीज ! तर्क कर नहीं सकते ... तर्क सुनना पसंद नहीं 
  • जी..और वे भी जो दुखी होना नहीं चाहते भले आमद या धर्म से न जुड़े हों।
  • aisi kabren aur kahan kahan hain .... ek aadh asali bhi hai ya sab yun hi ..................
  • ये तो शोध का विषय है .... दुनिया भर के वैज्ञानिक खाली बैठे कर क्या रहे हैं ... 
    सबको इसी रिसर्च पे लगा देना चाहिए !
  • Diwakar Mishra विज्ञान को भी हम अधिकतर आस्था के सहारे ही विश्वास करते हैं । मंगल पर 
    होने वाली खोज की नई नई खबरें आए दिन आती रहती हैं । यह कैसे काम कर रहा है, इसके वीडियो 
    भी इंटरनेट पर खूब मिल जाएँगे। खबरों के साथ अक्सर मंगल की धरती या उस छोटी गाड़ी की तस्वीर 
    भी होती है । पर इनमें से सारे वीडियो एनिमेशन द्वारा बनाए गए हैं और चित्र, शयद ही कभी असली वाला 
    भी सैकड़ों में एक छपता हो । पर उसे देखने वाले पूरी आस्था से मान लेते हैं कि सचमुच वहाँ ऐसा ही हो 
    रहा है (हो रहा होगा नहीं) । और इसी प्रविधि या मैनर से धर्म की बातों पर आस्था रखने वालों का मजे से 
    मजाक उड़ाते हैं । जिन धर्मग्रन्थों को प्रगतिवादी लोग सबसे अधिक गाली देते हैं और वैज्ञानिक सोच 
    वाले सबसे अधिक मजाक उड़ाते हैं, उन्हीं मे धर्म की कसौटी भी मिलती है - यस्तर्केणानुसन्धत्ते, तं धर्मं 
    वेद नेतरम् । यानि जो तर्क से खोजा जाए, वही धर्म है, अतार्किक बातें नहीं । विज्ञानभक्त (वैज्ञानिक नहीं) 
    तो इतनी हिम्मत भी नहीं दिखा पाते कहने की कि करके देखो, सही लगे तो मानना, न लगे तो झूठ समझ 
    लेना । वे तो कहेंगे कि यही सच है और दूसरा कुछ नहीं ।
  • कहा था न कि जिस धर्म ग्रन्थ को सबसे अधिक गाली देते हैं प्रगति वादी, वही मनुस्मृति धर्म की खुद 
    परीक्षा करने की छूट देती है । कोटेशन थोड़ा गलत था - यस्तर्केणानुसन्धत्ते स धर्मं वेद नेतरः॥ 
    (मनुस्मृतिः १२/१०६) और मतलब है कि जो तर्क से खोज करता है, वही धर्म को जानता है, दूसरा नहीं। 
    खुद तार्किक होकर धर्म को जान सकते हो । अगर किसी के उपदेश से धर्म को जानना चाहते हो तो 
    उसकी भी परीक्षा कर लो कि वह तार्किक है कि नहीं ।
  • Diwakar Mishra और एकाध सही है भी कि नहीं - मानो या न मानो । पर अगर खारिज करना 
    चाहते हो तो पहले उन तथ्यों की परीक्षा करने की जहमत जरूर उठा लेना जिनके आधार पर यह बातें 
    कही गई हैं । इसके लिए फ़ेसबुक की सतह से पुस्तकों की गहराई या विषय के जानकार की संगत में 
    उतरना पड़ेगा । और हाँ, अपने पूर्वाग्रह के खोल से बाहर भी निकलना पड़ेगा । और छोड़ दो यह डर कि 
    अगर सही सिद्ध हो गया तो क्या होगा, या गलत सिद्ध हो गया तो क्या होगा ।
  • Prakash Govind !!! NICE PRAVACHAN !!!

शुक्रवार, अगस्त 02, 2013

यथा प्रजा तथा राजा

बहुत पहले की बात है ! एक फ़कीर भ्रमण करते-करते किसी नगर में पहुंचा ! वहां मीठे पानी का एक कुंआ था, जिससे सम्पूर्ण नगरवासियों का काम चल जाता था ! फ़कीर ने कुंए का पानी पिया और घोषणा कर दी कि अगली पूर्णमासी को इस कुंए का पानी दूषित हो जाएगा ... जो भी इस पानी को पिएगा वो पागल हो जाएगा ! 

फ़कीर की यह बात चारों तरफ चर्चा का विषय बन गई .... हर तरफ शोर ! सयानों ने कहा कि ये फ़कीर खुद पागल है ... इसकी बात पर क्या ध्यान देना ! जैसा चल रहा है चलने दो ! यह मुद्दा राजा के कानों तक पहुंचा तो उसने तत्काल महामंत्री को बुलाया ! आपस में विचार-विमर्श किया .... महामंत्री ने समझा दिया कि मामला साधारण है ! चिंता करना फिजूल है ! 

राजा आश्वस्त नहीं हुआ ... उसने विवेक का स्तेमाल करते हुए अपने लिए बड़े-बड़े कुंड में मीठा स्वच्छ पानी संचित करवा लिया ! 

इधर कुछ ही समय बाद पूर्णमासी लगते ही कुंए का पानी सचमुच दूषित हो गया ! नगरवासी पानी पी-पीकर पागल हो गए ! राजा ने यह सब देखा तो मन में संतुष्टि हुयी कि अच्छा हुआ जो खुद के लिए पानी संचित करवा लिया ! संचित पानी कई वर्षों के लिए पर्याप्त था ! 

किन्तु कुछ ही दिनों के बाद राजा के लिए राज-काज चलाना मुश्किल हो गया ! वह जान गया कि इन पागलों पर शासन करना नामुमकिन है ! उसने तत्काल एक निर्णय लिया ....... उसने जो भी पानी स्वयं के लिए संचित करवाया था .. वो सारा पानी फिकवा दिया ! अब वो भी कुंए का दूषित पानी पिएगा, क्योंकि .............
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The End 
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लेखक : प्रकाश गोविन्द
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गुरुवार, अगस्त 01, 2013

हम पूर्वजों के क्रेडिट पर कब तक शान मारेंगे

नवीनतम से नवीनतम विज्ञान का अविष्कार भी धर्म की हजारों वर्ष पुरानी किताब में पहले से दर्ज है ! 
आगे भविष्य में भी जितने अविष्कार होंगे वो सब भी इन्ही धार्मिक ग्रंथों के हवाले से होंगे !
मुझे तो लगता है हमारे धर्म ग्रंथों का सबसे ज्यादा अध्ययन अमेरिका, जापान, फ्रांस वालों ने ही किया है .... 

उन्होंने वहीँ से सब चोरी कर लिया ! 

परमाणु बम क्या कद्दू .... हमारे यहाँ तो ब्रह्मास्त्र था 
विमान और राकेट गए तेल लेने ...हमारे यहाँ तो पुष्पक था 
फोन..मोबाईल तो कुछ नहीं ...हम तो परकाया प्रवेश में भी माहिर थे 
अमेरिका वाले मंगल जा रहे हैं ...हुंह ..
हमारे ऋषि-मुनि तो मंगल की मिटटी का रंग तक बता चुके हैं 
एलोपेथिक बकवास है ..... आयुर्वेद का लोहा तो दुनिया मान चुकी है 


आत्म मुग्धता के नशे से कब बाहर निकलेंगे ?
कभी भारत विश्व गुरु रहा होगा ... 
सवाल है कि -
"आज भारत क्या है ?"
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-- प्रकाश गोविन्द
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फेसबुक लिंक :

फेसबुक मित्रों द्वारा की गयीं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं
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Pankaj Mohan Sharma : 
Ab to duniya hamara GHOTALASHSTRA padh rahi hai. 
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Ranjan Yadav :
नीचे की पंक्ति अति सुन्दर- 'भारत विश्व गुरु रहा होगा ...आज भारत क्या है?'  
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Harmahendra Hura :
pracheen samay men Swiss Bank nahin tha isliye desh ki pragati desh mein samavisht thi. ab kuchh logon ki pragati aur desh ka vinaash hai  
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Sanjay Bengani :  
हमें वो इतिहास पढ़ाया जाता है जो हमें शर्मसार करे. और हम अपने अतित पर गर्व करना चाहते है. हम वर्तमान को बनानें में असफल रहे तो अपने अतित को वर्तमान से ज्यादा अच्छा बताते हैं. इसकी जड़ में यही है. 
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Ek Diwana Tha :
Aaj bharat corruption men sab se aage hai.   
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Shah Nawaz : 
आप इसे आत्म मुग्धता कह सकते हैं मगर यह सत्य है, हालाँकि ज़रूरत अब और भी आगे देखने की है। मगर क्या अपने गौरवशाली इतिहास को भुला देना चाहिए ? 
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Prakash Govind :
Shah Nawaz Bhayi हमें अपने अतीत पर ... अपने पूर्वजों पर निश्चित ही गर्व होना चाहिए ... लेकिन उनके इतिहास का ताबीज गले में लटकाने का बजाय उससे प्रेरणा लेनी चाहिए ... उससे सबक लेना चाहिए ... उसे आधार बनाकर आगे बढना चाहिए ... अतीत का ढोल बजाने से क्या होगा ?   
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Sandeep Gupta :
shah nawaz ji itihas nahi bhulana hai yaad rakhna hai. aur bhavishya ki traf dekhna hai.  
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Suryakumar Pandey :
maithili sharan gupt ne bharat bharti me iska vistar se varnan kiya hai.  
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Danda Lakhnavi :  
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पाखंडों से दोस्ती, सदाचर से........हेट। 
चार ग्राम युग-धर्म का, कई कुंतलों पेट॥
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Brajesh Rana : 
हिन्दुस्तान में वेद तो हैं ही नहीं. अँगरेज़ चुरा कर ले गए नहीं तो हम नंबर एक होते.  1197 से 1757 तक क्या कर रहे थे? 
पूरे भारत वर्ष में गुरुकुल थे और शिक्षा की अपूर्व व्यवस्था थी. सब अंग्रेजों ने बर्बाद कर दी. Macauley की औलादों ने. 
गांधारी अफगनिस्तान से, बाली और सुग्रीव और हनुमान इंडोनेशिया से, हिडिम्बा मणिपुर से. अपनी तो सिर्फ द्रौपदी हे. 
1197 से 1757 तक कुछ नहीं कर पाए और दोष देते हैं अंग्रेजों को. ये तो औरंगजेब में ही खुश रह सकते हैं. 
कोई दीक्षित साहिब हैं कहते थे की दातुन करनी चाहिए नीम के पेड़ की. अगर हिन्दुस्तानियों ने बात मान ली तो एक नीम का पेड़ नहीं बचेगा. पूरे सवा सौ करोड़ हैं अब तो. 
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Shivendra Sinha :
अभी खोज चल रही है / जिस दिन भी पारस पत्थर मिल गया हम अमेरिका, जापान और फ्रांस को जेब में रख के घूमेंगे.  
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Syed Khalid Mahfooz :
भविष्य को भूल कर, वर्तमान की चिंता छोड़, अतीत पर गर्व ... हमें कुएं का मेंढक बना देता है...  
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Prabhu Heda :  
ये तो कुछ भी नहीं साहब विश्व की प्रथम फायर प्रूफ लेडी भारत से थी जिसका नाम होलिका था, पहले पत्रकार नारद तो विश्व ही क्या समस्त ग्रहों की सनसनीखेज न्यूज़ टेलीकास्ट कर सकते थे, "संजय" के पास तो ऐसा सैटलाइट था की वो महाभारत का आँखों देखा हाल 3डी में देख और दिखा सकते थे, यही नहीं मेडिकल साइंस तो इससे भी आगे था अब गणपति का ही उधाहरण ले लो! दादागिरी भी हमसे ही सीखी है सबने. शनिदेव का आतंक आज भी हर शनिवार को उसके चेले दिखा जाते है !  
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Anupam Parihar :
अच्छी बहस है .... वर्तमान जब पीड़ित होता है तो अतीत की सांसें लेता है ....कुछ दिन तो चलेगा.  
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Shiv Shambhu Sharma :
आत्म मुग्ध हो तब तो बाहर निकले मुदा हम आत्मुग्ध भी नही है और आज का भारत क्या है यह बता पाना सहज नही रहा ... वैसे यह सच है जब दुनियां के और लोग आदिमानव थे तब यहां यज्ञ की समिधा दी जाती थी। ’ब्रम्ह सत्य जगतमिथ्या’ के सिद्धांत से न माया मिली न राम और हम नकलची आलसी बन कर रह गये जबकि आज जो नये आविष्कार परक सुविधाए हम भोग रहे है वह भी उन लोगो के परिश्रम का फ़ल है जो हमारे यज्ञ समिधा के समय आदिमानव थे।  
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Govind Singh Parmar  :  
भाई, आपकी बात अपनी जगह सही है, लेकिन जापान अमेरिका के लोग तब कुछ नहीं जानते थे जब हम नालंदा विश्वविद्यालय जैसा संस्थान चलाते थे, चीन, ईरान, भारत सबसे महत्वपूर्ण देश हुआ करते थे, आज विश्व व्यापार में हमारा हिस्सा केवल एक प्रतिशत है जो 1000 में 30 और 1500 सन में 25 प्रतिशत था, हां हम पिछले चार सौ सालो में बहुत पिछड़े है ! 
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Nitish K Singh :
Bade bade bhavishya apne me khone ki wajah se itihas men vileen ho gye... Intezar kijiye ek aur itihas ka.   
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Diwakar Mishra : 
Ham bhi bahut haisiyat rakhte the, keval dharm aur darshan men hi nahi, duniyavi cheezon men bhi... hazzaron saalon ki gulami ne bahut pichhaad diya hai.. jaisa ki uupar govind ji ne bataya.. us gulami ke jamane me bhi duniya ka ek chauthai vyapar hamare kabje me tha... Macauley ne hamare confidence ko khatam karne ka jo safal prayas kiya hai, us se yah aatma-mugdhata ka nasha hi bahar nikal kar la sakta hai... jarurat hai ki ise nashe ke roop men nahi, balki davayi ke roop me prayog kiya jaaye. 
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Huma Kanpuri :
हम क्या थे, आचार्य चतुरसेन का 'सोना और ख़ून' पढ़कर अंदाज़ा लगाया जा सकता है। अपना उपहास न किया जाए, ताकि औरों को भी बोलने का अवसर मिले।  
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Prakash Govind :
Huma Kanpuri Ji आचार्य चतुरसेन जी को खूब पढ़ा है ... ऐतिहासिक कहानियों को लिखने में उनका कोई मुकाबला नहीं ! सवाल ये है कि मान लीजिये हमारे परदादा नामी-गरामी पहलवान थे ... तो उनकी क्रेडिट पर हम दूसरों पर कब तक जलवा गांठते रहेंगे ? उपहास तो हम स्वयं अपना बना रहे हैं !  
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राजीव तनेजा  :  
वर्तमान में जीने के बजाय हम भूतकाल में जीते हैं....हर नई तकनीक चाहे वो मोबाईल हो या फिर कंप्यूटर ... हम दुसरे देशों की तरफ ताकते हैं लेकिन फिर भी पुरानी बातों को याद कर ... इण्डिया इज बैस्ट का नारा लगाते रहेंगे ! 
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Sunil Mishra Journalist :
Bharat aaj bhi Bharat hai....log jaisa bana rahe hain...waisa ban raha hai.....   
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दिनेशराय द्विवेदी : 
हमें नशे में जीने की आदत है। 
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Alok Khare :
Khush hote raho ! is par tax nahi lagta ! kehte raho hamaare chacha Jameedaar--Soobedaar the ! usse kya ? tum to saale driver ho ! usko jaano bas ! kaun kya tha usme kya rakha hai ? aur kab talk dhol peet-te rahoge wo bhi aisa jiski khaal na jaane kab ki fat chuki hai ! sahi kaha bhai ji! are theek he ham rahe honge vishva guru ! to kya uski pension aaj tak khaate rahoge khaali-peeli.  
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Prakash Govind :
आलोक भाई ... दहशत तो तब होती है जब कोई प्रकांड पंडित अपनी बात मनवाने के लिए भारी भरकम संस्कृत के श्लोक बोलने लगता है ... तब मुंडी ऊपर-नीचे हिलाने के अलावा कोई चारा नहीं बचता :-)   
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Ssd Agrawal :  
आपकी बात सही है परन्तु हमारी तकनीकी लिपिबद्ध न होने की वजह से कहानी किस्से बन कर रह गयी है । बहुत पीछे न जा कर मुगल शासन काल की ही बात करे उस समय जो तकनीकी थी वो विश्व मे प्रख्यात थी परन्तु आज विलुप्त हो गयी क्यूँ की हम सब अपनी विरासत को आगली पीढ़ी तक नहीं बढ़ा पाये ।  
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Diwakar Mishra :
इस पोस्ट पर बहुत कमेंट आए, और बहस चली । पर इतने सारे विमर्श से क्या किसी का मत बदला? यहाँ दो पक्षों के कमेंट आते रहे हैं । और जब उनके कमेंट दुबारा आते हैं तो लगता है कि उनका मत अब भी उसी ओर ही नहीं बल्कि उसी जगह पर है । आखिर क्यों लम्बी चर्चा के बाद भी किसी के मत में (अक्सर) विकास या परिवर्तन नहीं होता । कारण कि अधिकतर की प्रवृत्ति सुनने की नहीं सुनाने की होती है, सीखने की नहीं सिखाने की होती है, सीखने को चेला बनना और सिखाने को गुरु बनने के रूप में देखते हैं और गुरु बनना चाहते हैं । क्या कोई ऐसा है जिसका मत ऊपर की चर्चा पढ़कर बदला हो? यदि हो तो कृपया बताएँ ।  
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Prakash Govind :
Diwakar Mishra Ji आपकी प्रतिक्रया अच्छी लगी ! आभार !! ....... 
फेसबुक सहज अभिव्यक्ति का एक माध्यम है ! यहाँ गुरु-चेला बनाने जैसी कोई बात नहीं ! हम सभी यहाँ एक-दुसरे से ही काफी कुछ सीखते हैं ! जहाँ तक मत या विचार बदलने की बात है तो वो एक ऐसी प्रक्रिया है जो धीरे-धीरे ही होती है ! मन के भीतर जमी परतों को खुरच के अलग करना इतना आसान नहीं होता ! अभी तो सिर्फ इतना ही बहुत है कि हम एक-दूसरे को सुनें ... समझें और अभिव्यक्ति का सम्मान करें !  
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आनंद शर्मा :  
Vivek Shrivastava Aap se poorn sahmati .. puraani uplabdhiyaa prerak ho sakti hain ... par unke bharose vartmaan men sirf deenge haanknaa katayi theek nahi. 
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Prakash Govind :
हम विकास का अंतर इस बात से लगा सकते हैं कि जब यहाँ तुलसीदास जी रामायण की चौपाईयां रच रहे थे तब यूरोप में कैमरे का आविष्कार अंतिम पड़ाव पर था ! 
आप इतिहास उठा के देखिये हमने हर प्रगति और परिवर्तन का जमकर विरोध किया ! लेकिन हुआ क्या ? सारे परिवर्तन होकर ही रहे बस विरोधों और उदासीनता के कारण गति धीमी रही ! जब रेलगाड़ी आई तो तहलका मच गया ... लोग छाती पीटने लगे कि इससे तो हिन्दुस्तान बर्बाद हो जाएगा ... देश के सारे पशु - गाय-बैल-बकरी कट के मर जायेंगे ! आस-पास के मकान गिर जायेंगे ! गर्भवती महिलाओं पर बहुत घातक असर पड़ेगा ... जाने-जाने क्या-क्या बातें और विरोध !

कैमरा आया तो लोगों ने अफवाह फैला दी कि इससे तस्वीर मत उतारने देना ...शरीर की ताकत ख़त्म हो जायेगी ! घरों में नल लगने शुरू हुए तो लोगों ने भगा दिया ..... ये पानी कौन पिएगा ... जाने कितने कितने दिन का बासी पानी ...सब अशुद्ध हो जायेंगे ! ... 

इसी तरह चाय का विरोध ...चीनी का विरोध ...अंग्रेजी दवाईयों का विरोध ... टीवी का विरोध ... हर चीज का विरोध किया ! विरोध, नकारात्मकता और परिवर्तन से घबराना हमारा मूल स्वभाव ही है ! 

आपको याद है न ? जब कंप्यूटर आया था तो पूरे देश ने कैसा विरोध किया था ... सब बेरोजगार हो जायेंगे .. हाय दादा अब क्या होगा ! आज क्या स्थिति है बताईये ? कंप्यूटर के बिना हम स्थिति की कल्पना भी नहीं करना चाहते !   
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शैलेश गुप्ता : 
लेकिन आज के इस विकसित साइंस और सनातन विज्ञान में एक मूल भूत फर्क था और वो की हमारे यहाँ जो कुछ भी तकनीक विकसित की गई थी वो पर्यावरण के संतुलन को बनाये रखती थी परन्तु आधुनिक विज्ञानं में वो बात नहीं ..... और पूर्ण सहमत हु आप की इस बात से भी की समय पूर्वजो के विकास से आत्म मुग्ध होने का नहीं बल्कि उन से सीख और प्रेरणा ले कर आगे बढ़ने का है ! 
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Mumtaz Aziz Naza :
wo chidiya, jis ko sone ke lalach ne noch noch kar itna zakhmi kar diya hai ke wo tadap tadap kar cheekh rahi hai, phir bhi us par kisi ko taras nahi aa raha  
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जितेन्द्र जौहर :
यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण है, इसे हवा में नहीं उड़ाया जा सकता...!  
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