Short Story / लघु कथा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Short Story / लघु कथा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, अगस्त 06, 2013

अथ श्री सदाचारी कथा


सदाचारी और अवसरवादी दो बालक थे ! सदाचारी अपने नाम के अनुरूप आज्ञाकारी, परिश्रमी बालक ...  तो वहीँ अवसरवादी आवारागर्दी करता ... जुआं खेलता ...गांजे की चिलम खींचता ... प्रधान जी का ख़ास चेला ! 

सदाचारी पढाई में हमेशा अव्वल और अवसरवादी पता नहीं कौन से जुगाड़ से गांधी डिवीजन में पास हो ही जाता !

कालेज में भी वही हाल ! सदाचारी मन लगा के पढाई करता .. गुरुओं का सम्मान करता ... उधर अवसरवादी अपने गुट के साथ तोड़-फोड़, धरना प्रदर्शन, नेतागिरी में व्यस्त रहता ! 

थोड़े अरसे बाद ही अवसरवादी कालेज छोड़ चुका था ... वैसे भी पकड़ा ही कब था ! एक विधायक जी के पीछे लगा रहता ...तमाम तरह की दलाली जैसे सांस्कृतिक कार्यों में व्यस्त रहता ! उधर सदाचारी की पढाई जैसे तैसे साल दर साल चलती रही !

दिन गुजरते गए ...सदाचारी का संघर्ष ज्यों का त्यों .... विवाह के पश्चात तो गुजर और भी मुश्किल ... बस जैसे-तैसे कट रही थी ! उधर अवसरवादी आये दिन दिल्ली में डेरा जमाये रहता ... भागदौड़ रंग लायी .. सियासत में गोट जमा ली .. विधायकी का टिकट हासिल कर लिया !

तीन साल बाद ...


मुलाकातियों का दरबार लगा हुआ था .. अवसरवादी ने वहां सदाचारी को देखा तो मुस्कुराया ... सदाचारी की बुरी स्थिति से अवगत होने के बाद अपने पी ए को इशारा किया - "इनके कागज़ ले लेना .. देखता हूँ कुछ!

तीन महीने बाद ....

 सब सही हो गया !
सदाचारी को सरकारी ड्राईवर की पक्की नौकरी मिल गयी !
अब सदाचारी कार चलाता और अवसरवादी आराम से पीछे बैठा दिखाई देता है !

==========
The End 
==========
लेखक : प्रकाश गोविन्द
-----------------------

फेसबुक लिंक :

फेसबुक मित्रों द्वारा की गयीं कुछ प्रतिक्रियाएं
bar
-----------------------------------------------------------------------------------------------
    • ये सत्य कथा तो लोगों को पढाई लिखाई से दूर कर देगी. दूर कर देगी.
  • कथा बिलकुल सत्य है !
  • Shrichand Balodia 
    bhartiy rajniti se avsarvadiyon ko door karna chahiye.
  • आज परिस्थिति ऐसी ही है ये बदलेगी, सदाचारी सहनशील धैर्यवान हो सकता है पर दम नहीं तोड़ सकता ।
    सुर असुर संग्राम होना है और ये बताने की जरूरत नहीं की विजयश्री किसका वरण करेगी ।
  • विजयश्री पिछले हारों सालों से अवसरवादी का ही वरन कर रही हे. आगे भी उसी का करेगी. धार्मिक लोग 
    एक तरफ तो अवसरवादी के साथ होंगे और सदाचारी को वेड पूरण पढ़ात हुए कहंगे की धीरज रखो. 
    धर्म की ही जय होती हे.और बेचारा सदाचारी नहीं जानता की धर्म तो अवसरवादी के साथ हे.
  • कलयुग मे ऐसे लोग काफी उन्नति करेगे । दिलोदिमाग मे बैठा लीजिए आगे चलकर ऐसे लोग 
    तिहाड़ जेल की शोभा बढाएगें ।
  • wah ........... laajawab
  • ये आपने हमारे क्षेत्र का जिक्र कर डाला !
  • @Brajesh Rana ji सदाचारी को धीरज रखने से काम नहीं चलेगा उसे महासंग्राम मे उतरना पड़ेगा ।
  • :-)  :-)  :-)
  • vartmaan sthiti par kya jabardast kahaani hai...jo bilkul sateek hai...
  • Avsarvadiyon ki Jai Ho .... bahut dhaardhar katha hai
  • हर जगह अवसरवादियों का ही तो राज है. वर्तमान हालात पर बहुत सही कटाक्ष किया है.
  • आपने वर्तमान की सजीव और सटीक झांकी दिखाई है / बहुत खूब 
  • aur ek din sadachari ne awasrwadi ki gaadi pool se nadi men kudaa di aur khud pahile 
    kood gyaa... is prakaar awasrwaadi kaa ant huaa... baad me sadachari ne awasaradi ki 
    biwi ko pataa liya aur fir use chunaav ladwaa diyaa... fir usse istifaa lekar khud mantri 
    ban gyaa.......... moral of the story : sadaachaari sabka baap hotaa hai..... Use lallu 
    Samajhane ki Gustakhi karne waala bahut bad lallu hota hai.
  • sadachaari Vs avsarvaadi ..rochak..@pawan mishra..ha ha ha! good comment.
  • vyavastha hi kuchh aisi hai ki jahan sadachari ke liye koi jagah nahin...sivaaye avsarvadi 
    ka driver ban-na...ya anya avsarvadi ka mulazim banna.../ waah ! Prakash ji...
  • इनके कागज़ ले लेना .. देखता हूँ कुछ !
  • Shamim Shaikh 
    sahi bat hai,
  • वाह पवन जी वाह ..... ...... आपने तो सदाचारी के अन्दर अवसरवादी की आत्मा ही प्रवेश करा दी .... 
    क्या बेहतरीन विस्तार दिया है  :-)   :-)
  • प्रकाश जी क्या है ना जब सदाचारी अपने आचार को सड़ते देखता है तो वह अपने अन्दर किसी आत्मा वात्मा 
    को प्रवेश नहीं करने बल्कि यह दिखाता है कि अवासरवादी होना कितना सरल है सदाचार का मार्ग कितना कठिन। 
    यह एक मैंने नजीर दी उन लोगो को जो आज के जमाने में सदाचार का मखौल उड़ाते है।
  • अब सदाचारी कार चलाता और अवसरवादी आराम से पीछे बैठा दिखाई देता है !
  • kya baat hai wah
  • kahani men ekdam sachchayi hai ,,,, very nice post
  • हाँ हा हा हा ..सत्य परेशान भी है और अब पराजित भी है ...
  • SADACHARI hamesha AVSARVADI se haarta aaya hai.
  • Pawan Mishra ji ne kahani ko bahut sundarta se aage badhaya hai 
  • दुर्भाग्य से हमारे देश के सदाचारि प्रतिभाए इसी ब्यवस्था के शिकार हैं |
    काश ! इस ब्यवस्था पर बदलाव के कोइ ठोस कदम उठाये जाये….
  • Guruon ki kammi ho gayi hai desh men
  • यह हकीकत है. ऐसा ही होता है.
  • अति उत्तम
  • सही लिखा है आपने... अवसरवादियों का ज़माना है आजकल.. और सदाचारी अक्सर भूखे मरते हैं....
  • avsar bhagy se milta hain . is liye bhagy ko maano
  • रामचन्द्र कह गय सिया से ऐसा कलयुग आयगा हंस चुगेगा दाना चुग्गा कोआ मोती खायगा
  • ye desh ka durbhagya hai ke aisi sthiti hai.doshi hum sabhi hain.
  • All right.
  • VERY UNFORTUNATE , SOME WHAT CRUEL TRUTH ---INDIA MAHAN HAI
  • bahut achchha
  • bahut badia sir...
  • halaat to yahi hain aaj kal ke! true story!
  • अवासरवादी तमाम तरह की दलाली जैसे सांस्कृतिक कार्यों में व्यस्त रहता !
    Bahut umda sir 
  • bahut khoob
  • BEAUTIFUL STORY 
  • आज का कटु सत्य...बहुत सुन्दर और सटीक...
  • :-)   :-)  :-)
  • एक कड़वी सच्चाई है भाई आज के दौर की.
  • Prem Kumar 
    Hai to kadwi lekin is me sachchayi hai.
  • भाई ,एक दूर के हमउम्र रिश्तेदार थे ,जब हम छोटे थे तो वो गाव आ जाया करते थे ,हम लोग खूब खेला 
    करते थे ,कुश्ती भी लड़ते थे ,वक्त बीता मई अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जब लखनऊ में रह रहा था तो 
    पता लगा कि एक ...... नाम के सज्जन है ,जिनकी तूती बोलती है ,पता किया तो पता लगा कि ये वही 
    सज्जन है ,मै एक दिन मोबाइल नंबर लेकर फोन मिलाया और पुरानी बातो का जिक्र किया वो बहुत खुश हुए 
    और तुरन ही दारुल्सफा विधायक निवास में मिलने को बुलाया ,मै अपनी फटफटिया चलाता हुआ पंहुचा ,देखा 
    तो दंग रह गया ,तीन चार सैडो और कई गाडिया ,दसो लोग उन्हें घेरे हुए थे ,जब परिचय दिया तो मुलाक़ात हुयी, 
    मै अपने को हीनभावना से ग्रस्त पा रहा था ,दो दिन बाद उन्होंने बुलाया कहा कि मायावती जी का राजभवन में 
    शपथ ग्रहण समारोह है ,वो मुझे अपने साथ ले गए ,सबसे आगे कि पंक्ति में मै विराजमान था ,उनका जलवा 
    देखकर ,मुझे अपने पढ़े होने पर कोफ़्त हो रही थी ,खैर मै बुझे मन से वापस आया ,एक दो बार फिर मुलाक़ात 
    हुई ,उन्होंने कहा भी कोई काम हो तो बताऊ ,लेकिन मैंने कोई काम नहीं बताया ,खैर कुछ दिनों बाद सरकार 
    बदल गई ,मुलायम सिंह जी कि सरकार आई ,सरकार ने उनपर दो लाख का ईनाम रखा ,एक दिन सुवह अखबार 
    में मुख्या खबर थी कि एस टी ऍफ़ ने ......का इनकाउंटर कर दिया ,मै अपने को खुश्नाशीब मान रहा था ,
    मुझे लगा कि मेरी जिन्दगी ज्यादा बेहतर थी ,न कोई डर न भय
  • @Prakash ji ---) is katha me aaj k daur ki jhalak saaf dikhayi deti hai...
  • Nilesh K Patel 
    nice link
  • Prakash Govind ji kissa byani to aaina dikha rahi hai zamaane ka ....... bahut achhe ... 
    avsarvadita ........ aur jugaadbaji ...... do mukhya gun hain 
  • gadhe gulab jamun kha rhe he ,or sher gaas kha rhe he........shidu sab.ki sharyi sun lo....
    sarkare tamam umr yahi bhul karti rahi , dhul unke chehre par thi or aaina shaff karti rahi.......
  • Prakash Govind --------
    सरकारें तमाम उम्र यही भूल करती रहीं
    धुल उनके चेहरे पर थी और आईना साफ़ करती रही !
    -
    बहुत खूब
  • एकदम सही कटाक्ष !!!!
  • katu satya kah diya
  • चलिए अभी खैरियत है कि ड्राइविंग सीट पर सदाचार ही है....
  • Very Very Nice...
  • Kamlesh Nikhare 
    100mese 80 baiman fir bhi mera desh mahan.
  • likha to vastvik sunder hai....
  • sahi or sajeev chitran..
  • बिलकुल, प्रायोगिक सत्य है यह !
  • jugaad dot com
  • Likha to satya hai lekin hume kiska chunav karna chahiye.
  • Singh Ranjit 
    avsarvadiyon ki hi raj shaahi hai
-------------------------------------------------------------------------------------------
bar

सोमवार, जुलाई 27, 2009

अकेला / हमदर्द [दो लघु-कथाएँ]


अकेला [लघु-कथा]
*******************************
यूँ तो पूरे गाँव में सौ के लगभग घर थे, फिर भी उसे अपने अलग-थलग पड़ जाने की कसक थी ! यह बात मन को बहुत कचोटती थी कि पूरे गाँव में उसकी जाती-बिरादरी का कोई भी व्यक्ति ना था !

मैट्रिक की पढ़ाई के पश्‍चात कुछ ऐसा संयोग बना कि आगे के अध्ययन के लिए अपने मामा के पास दूसरे प्रदेश जाना पड़ा ! अब उसका एकाकीपन और भी बढ़ गया था ! जब भी उसे कोई अपनी तरफ का व्यक्ति मिलता, उसका मन प्रफुल्लित हो उठता ... चेहरे की चमक बढ़ जाती ! उसके बाद फिर वही अकेलापन !

पढ़ने-लिखने में आरंभ से ही मेधावी छात्र होने के कारण इंजीनियरिंग कालेज में चयन हो गया ! इंजीनियरिंग में टॉप करने के उपरांत विदेश जाने का अवसर मिला तो अमेरिका के लिए रवाना हो गया ! वहीं 'स्पेस रिसर्च सेंटर' में नौकरी भी लग गयी ! सभी ऐशो-आराम वा सुख-सुविधाओं के बीच भी उसे सदैव तलाश रहती थी, अपने देश के किसी भी व्यक्ति की ! भीड़ से घिरा रहने के बावजूद भी वह अपनी तन्हाई से परेशान रहता !

बहुउद्देशीय परियोजना के अंतर्गत अंतरिक्ष में स्थापित प्रयोगशाला में शोध कार्य हेतु प्रतिभाशाली तीन लोगों का चयन हुआ तो उसमें उसका भी नाम था

आज उसे अंतरिक्ष में स्थित लैब में काम करते हुए आठ दिन हो गये थे ! दो दिन पूर्व उसके दोनो सहयोगी पृथ्वी पर अति-आवश्यक उपकरण सामग्री लाने गये थे ! अब उसे घबराहट हो रही थी ! उसके एकाकीपन वाला बुखार तेज होता जा रहा था !

उसके अधीर व व्याकुल मन को प्रतीक्षा थी - पृथ्वी के किसी भी व्यक्ति की !'

********************************************************************

हमदर्द [लघु-कथा]
********************************
एक लंबी आह भरते हुए उन्होने अख़बार से सिर उठाया,
'ओह, क्रुएल, किस कदर निर्दयी हैं !'
फिर उनकी दृष्टि पास बैठे साथियों पर घूम गयी,
'देखिए साहब, साइंस के नाम पर बेचारे जानवरों पर कितना ज़ुल्म हो रहा है !'

मेज पर अख़बार फैलाते हुए वे बोले,
'ज़रा देखिए, इस बेचारे मंकी चाइल्ड को, इसकी आँखों में कितना दर्द दिखाई दे रहा है, बेचारा मासूम है .... तड़प रहा होगा दर्द से, मगर बेज़ुबान है ! अपनी पीड़ा व्यक्त नहीं कर सकता, कहे भी तो किसे ?'

'क्या हुआ .... ?' लोगों की निगाहें समाचार-पत्र में छ्पे चित्र पर टिक गयी !

'अरे इस बेचारे का दिल काटकर निकाल दिया और इस मासूम बच्चे को मशीन का दिल लगाकर दो महीने से जिंदा रखे हुए हैं ! कितना अमानवीय कार्य है और फिर इस परीक्षण को विज्ञान की सफलता कहते हैं !
इस बेचारे के दर्द का ज़रा भी एहसास नहीं ...... !'

'साहब, ........
ख़ानसामा ने कमरे में आते हुए पूछा, - 'आज मुर्गा बनेगा या मीट ?'

'अरे भाई, मुर्गा ही ले आओ, लेकिन हाँ .. पिछली बार का मुर्गा ज़रा सख़्त था !
लगता है बड़ा मुर्गा ले आए थे ! ऐसा करो, एक बड़े की जगह दो छोटे-छोटे चूजे ले आओ ! दस-बीस रुपया ज्यादा लग जाए तो कोई बात नहीं !'

साहब फिर से गंभीरतापूर्वक अख़बार की अन्य खबरें पढ़ने में व्यस्त हो गये !

*****************************************************************

गुरुवार, जून 25, 2009

यकीन

यकीन [लघु कथा 131लघुकथा एवं रेखा चित्र - प्रकाश गोविन्द

वह दोनों आमने-सामने बैठे थे ! बीच में एक छोटी सी गोल मेज थी ! जिसमें कॉफी के दो प्याले, एक शुगर पाँट, दो चम्मच और एक ऐश ट्रे पड़ी थी ! आदमी सिगरेट पीते हुए थोड़ी-थोड़ी देर बाद मुस्करा देता था ! औरत चुप थी, लेकिन आदमी की मुस्कराहट से परेशान हो उठती थी !

उसने आदमी से पूछा - "कितने चम्मच चीनी" ?

आदमी ने सन्क्षिप्त जवाब दिया - "दो चम्मच" !

"लेकिन तुम तो हमेशा एक चम्मच चीनी लेते हो" ?

"हाँ" !

"फिर" ?

"आज से पहले तुमने भी तो कभी कुछ पूछा नहीं" !

"हाँ .... लेकिन" ?

"लेकिन कुछ नहीं , आज कॉफी कुछ अधिक मीठी हो तो अच्छा है"

औरत ने चुपचाप दो चम्मच चीनी डाली और कप आदमी की तरफ बढा दिया ! दोनों धीरे-धीरे कॉफी 'सिप' करने लगे और आहिस्ता-आहिस्ता कप खाली हो गए ! सन्नाटे को तोड़ते हुए औरत बोली -
"जानते हो तुम्हारी कॉफी में जहर था, .... जो एक घंटे बाद तुम पर अपना असर दिखायेगा" !

आदमी ने सुना और आहिस्ता से बोला - "मालूम था" !

औरत ने ठहाका लगाया और बोली -
"यानी कि तुमको मालूम था ... इस कप में जहर था,, फिर भी तुम पी गए ? .... जबकि तुम मना कर सकते थे या बहाने से कप गिरा सकते थे या फिर अलमारी से अपना रिवाल्वर निकालकर मुझे गोली भी मार सकते थे,,,लेकिन तुमने यह सब नहीं किया और कॉफी पी गए" ?

"हाँ जानता था फिर भी मैं पी गया ! इसका भी एक कारण है ..... मैं यकीन नहीं कर पा रहा था कि तुम मुझे जहर भी दे सकती हो ... और दुविधा में जीने से बेहतर है असलियत जानने की ललक में मर जाना" !
********************************************************
[कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित]

bar'यकीन' लघु कथा को अल्पना वर्मा जी के स्वर में सुनिए :