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रविवार, जून 19, 2016

गुरु और चेला :-)


घने जंगल से गुजरती हुई सड़क के किनारे एक ज्ञानी गुरु अपने चेले के साथ एक बोर्ड लगाकर बैठे हुए थे, जिस पर लिखा था :- 
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"ठहरिये... आपका अंत निकट है। इससे पहले कि बहुत देर हो जाये, रुकिए ! हम आपका जीवन बचा सकते हैं।" -- 
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एक कार फर्राटा भरते हुए वहाँ से गुजरी। चेले ने ड्राईवर को बोर्ड पढ़ने के लिए इशारा किया। ड्राईवर ने बोर्ड की तरफ देखा और भद्दी सी गाली दी और चेले से यह कहता हुआ निकल गया :- 
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 "तुम लोग इस बियाबान जंगल में भी धंधा कर रहे हो, शर्म आनी चाहिए।" 
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चेले ने असहाय नज़रों से गुरूजी की ओर देखा। गुरूजी बोले, "जैसे प्रभु की इच्छा।" 
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कुछ ही पल बाद कार के ब्रेकों के चीखने की आवाज आई और एक जोरदार धमाका हुआ। 
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कुछ देर बाद एक मिनी-ट्रक निकला। उसका ड्राईवर भी चेले को दुत्कारते हुए बिना रुके आगे चला गया। 
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कुछ ही पल बाद फिर ब्रेकों के चीखने की आवाज़ और फिर धड़ाम। 
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गुरूजी फिर बोले - "जैसी प्रभु की इच्छा।" 
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अब चेले से रहा नहीं गया और वह बोला, "गुरूजी, प्रभु की इच्छा तो ठीक है पर कैसा रहे यदि हम इस बोर्ड पर सीधे-सीधे लिख दें कि - "आगे पुलिया टूटी हुई है" 


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रविवार, जून 12, 2016

शक्ति का बिखराव


एक बार कबूतरों का झुण्ड, बहेलिया के बनाये जाल में फंस गया। सारे कबूतरों ने मिलकर फैसला किया और जाल सहित उड़ गये "एकता की शक्ति" की ये कहानी आपने यहाँ तक पढ़ी है .... इसके आगे क्या हुआ वो आज प्रस्तुत है : - 

बहेलिया उड़ रहे जाल के पीछे पीछे भाग रहा था। एक सज्जन मिले और पूछा क्यों बहेलिये तुझे पता नही कि "एकता में शक्ति "होती है तो फिर क्यों अब पीछा कर रहा है ? 
बहेलिया बोला "आप को शायद पता नही कि शक्तियों का अहंकार खतरनाक होता है जहां जितनी ज्यादा शक्तियां होती है, उनके बिखरने के अवसर भी उतने ही ज्यादा होते है"। 
सज्जन कुछ समझे नही ! बहेलिया बोला आप भी मेरे साथ आइये। सज्जन भी उसके साथ हो लिए। 
उड़ते उड़ते कबूतरों ने उतरने के बारे में सोचा ... एक नौजवान कबूतर जिसकी कोई राजनीतिक विचारधारा नहीं थी, उसने कहा किसी खेत में उतरा जाये ... वहां इस जाल को कटवाएँगे और दाने भी खायेंगे। 
एक समाजवादी टाइप के कबूतर ने तुरंत विरोध किया कि गरीब किसानो का हक़ हमने बहुत मारा...अब और नही !! 
एक दलित कबूतर ने कहा, जहाँ भी उतरे पहले मुझे दाना देना और जाल से पहले मैं निकलूंगा क्योकि इस जाल को उड़ाने में सबसे ज्यादा मेहनत मैंने की थी। 
दल के सबसे बुजुर्ग कबूतर ने कहा, मै सबसे बड़ा हूँ और इस जाल को उड़ाने का प्लान और नेतृत्व मेरा था,, अत: मेरी बात सबको माननी पड़ेगी। 
एक तिलक वाले कबूतर ने कहा किसी मंदिर पर उतरा जाए, बंसी वाले भगवन की कृपा से खाने को भी मिलेगा और जाल भी कट जायेंगे। - तुरंत ही टोपी वाले कबूतर ने विरोध किया, उतरेंगे तो सिर्फ किसी मस्जिद पर ही। 
अंत में सभी कबूतर एक दुसरे को धमकी देने लगे कि मैंने उड़ना बंद किया तो कोई नहीं उड़ नही पायेगा, क्योकि सिर्फ मेरे दम पर ही ये जाल उड़ रहा है और सभी ने धीरे-धीरे करके उड़ना बंद कर दिया। 
परिणाम क्या हुआ कि अंत में वो सभी धरती पर आ गये और बहेलिया ने आकर उनको जाल सहित पकड़ लिया। 
सज्जन गहरी सोच में पड़ गए .... बहेलिया बोला क्या सोच रहे है महाराज !! सज्जन बोले "मै ये सोच रहा हूँ कि ऐसी ही गलती तो हम सब भी इस समाज में रहते हुए कर रहे है। 
बहेलिया ने पूछा - कैसे ? 
सज्जन बोले - हर व्यक्ति शुरू में समाज में अच्छा बदलाव लाने की चाह रखते हुए काम शुरू करता है, पर जब उसे ऐसा लगने लगता है कि उससे ही ये समाज चल रहा है, तो वो चाहता है सभी उसके हिसाब से चलें। तब समस्या की शुरुआत होती है। जैसा इन कबूतरों के दल के साथ हुआ, क्योकि जाल उड़ाने के लिए हर कबूतर के प्रयास जरूरी थे और सिर्फ किसी एक कबूतर से जाल नही उड़ सकता था। 
इसलिए यदि अन्य लोग भी ऐसी नकारात्मक सोच रखेंगे और अपने प्रयास बंद कर देंगे तो समाज में भी गिरावट आएगी। हमें अपने हिस्से के प्रयास को कभी भी बंद नहीं करना चाहिए ! 

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शुक्रवार, जून 10, 2016

अपेक्षाओं का कोई अन्त नहीं



रात के समय एक दुकानदार अपनी दुकान बन्द ही कर रहा था कि एक कुत्ता दुकान में आया । उसके मुॅंह में एक थैली थी। जिसमें सामान की लिस्ट और पैसे थे। दुकानदार ने पैसे लेकर सामान उस थैली में भर दिया। कुत्ते ने थैली मुॅंह मे उठा ली और चला गया। 
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दुकानदार आश्चर्यचकित होके कुत्ते के पीछे पीछे गया, ये देखने कि इतने समझदार कुत्ते का मालिक कौन है।
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कुत्ता बस स्टाॅप पर खडा रहा। थोडी देर बाद एक बस आई जिसमें चढ गया। कंडक्टर के पास आते ही अपनी गर्दन आगे कर दी। उस के गले के बेल्ट में पैसे और उसका पता भी था। कंडक्टर ने पैसे लेकर टिकट कुत्ते के गले के बेल्ट मे रख दिया। अपना स्टाॅप आते ही कुत्ता आगे के दरवाजे पे चला गया और पूॅंछ हिलाकर कंडक्टर को इशारा कर दिया। बस के रुकते ही उतरकर चल दिया। 
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दुकानदार भी पीछे पीछे चल रहा था। कुत्ते ने घर का दरवाजा अपने पैरों से 2-3 बार खटखटाया। अन्दर से उसका मालिक आया और डंडे से उसकी पिटाई कर दी। 
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दुकानदार ने मालिक से इसका कारण पूछा। 
मालिक बोला - "इस साले ने मेरी नींद खराब कर दी। चाबी साथ ले कर नहीं जा सकता था गधा ?" 
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जीवन की भी यही सच्चाई है। 
लोगों की अपेक्षाओं का कोई अन्त नहीं है। 


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गुरुवार, जून 09, 2016

पिता-पुत्र कथा



माँ के निधन के पश्चात इकलौते बेटे ने पत्नी के कहने में आ कर अपने पिता को वृद्धाश्रम में भेजने का निर्णय ले लिया। पिता की समस्त भौतिक वस्तुएँ समेट वो एक ईसाई पादरी द्वारा संचालित वृद्धाश्रम में पिता को ले आया। 
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काउंटर पर बैठी क्लर्क ने बहुत से विकल्प दिए टेलीविज़न, एसी, शाकाहारी, मांसाहारी इत्यादि । पिता ने सादे एक वक़्त के शाकाहारी भोजन को छोड़ सब के लिए मना कर दिया। 
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पुत्र पिता का सामान कार से निकालने बाहर गया । तभी पत्नी ने फ़ोन किया ये पता लगाने के लिए कि सब कुछ ठीक से निपटा या नहीं । और इस बात के लिए पति को ज़ोर देकर आगाह किया की उसके पिता को अब त्योहारों पर भी घर आने की ज़रुरत नहीं। 
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क्रिश्चियन पादरी बाहर आये पिता को देख उनकी और बढ़ गये और उनके दोनों कन्धों पर हाथ रख कर बात करने लगे। 
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इस दौरान पिता हिम्मत से मुस्कुराते रहे। 
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बेटे को बड़ा आश्चर्य हुआ, उसने तुरंत निकट पहुंचकर पादरी से पूछा कि क्या वो पूर्व परिचित हैं ? जो इतनी बेतकल्लुफी से बात कर रहे हैं ? 
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पादरी ने गीली आँखें पोछते हुए बेटे को देखा और कहा - हाँ ! बहुत ही अच्छे से। आपके पिता 30 साल पहले यहां आये थे और अपने साथ एक अनाथ बच्चे को ले गए थे, गोद लेने के लिए !!! बेटा अवाक था....!!! 

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रविवार, सितंबर 27, 2015

निश्छल प्रेम


[कश्यप किशोर मिश्रा द्वारा रचित उत्कृष्ट लघु कथा]
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एक बूढ़ी औरत सड़क के किनारे डलिया में संतरे बेचती थी 
एक युवा अक्सर उसके पास से संतरे खरीदता. 
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हर बार खरीदे हुए संतरों से एक संतरा निकाल उसकी एक फाँक चखता और कहता -
“ये कम मीठा लग रहा है, देखो !” 
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बूढ़ी औरत संतरे को चखती और प्रतिवाद करती - “ना बाबू मीठा तो है!” 
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वो युवक उस संतरे को वही छोड़, बाकी संतरे ले गर्दन झटकते आगे बढ़ जाता. 
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युवक अक्सर अपनी पत्नी के साथ होता था, एक दिन पत्नी नें पूछा - 
“ये संतरे हमेशा मीठे ही होते हैं, पर यह नौटंकी तुम हमेशा क्यों करते हो ?” 
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युवा ने पत्नी को एक मघुर मुस्कान के साथ बताया - “वो बूढ़ी माँ संतरे बहुत मीठे बेचती है, पर खुद कभी नहीं खाती, इस तरह उसे मै संतरे खिला देता हूँ…” 
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एक दिन, बूढ़ी माँ से, उसके पड़ोस में सब्जी बेचनें वाली औरत ने सवाल किया - “ये झक्की लड़का संतरे लेते समय इतनी चिक-चिक करता है, पर संतरे तौलते समय मै तेरे पलड़े देखती हूँ, तू हमेशा उसकी चिक-चिक के चक्कर में उसे ज्यादा संतरे तौल देती है”. 
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बूढ़ी माँ नें साथ सब्जी बेचने वाली से कहा - “उसकी चिक-चिक संतरे के लिए नहीं, मुझे संतरा खिलानें को लेकर होती है, मै बस उसका प्रेम देखती हूँ, पलड़ो पर संतरे अपनें आप बढ़ जाते हैं ।”
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The End
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शनिवार, सितंबर 26, 2015

प्रोफेशनल भिखारी


कल मुझे एक नौजवान स्टेशन पर मिला। 
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कहने लगा - . "मेरी जेब से पर्स कही गिर गया है, बस मुझे जयपुर पहुंचने तक के पैसे दे दीजिये। 
टिकट 150 रूपये का है। और आगे रेलवे स्टेशन से मैं पैदल अपने घर चला जाऊंगा। बस 150 रूपये 
चाहिये। वैसे मै बहुत संपन्न परिवार से हूँ। मुझे मांगते हुए झिझक महसूस हो रही है।" 
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मैने कहा - 
"इसमे शर्माने वाली कोई बात नहीं है। कभी मेरे साथ भी ऐसा हो सकता है ... ये लो मेरा फोन अपने घर वालो से बात करो, उनसे कहो कि मेरे इस नबंर पर 200 रूपये का रिचार्ज करवा दें और उसके बाद तुम मुझसे 200 रूपये नकद ले लो। तुम्हारी परेशानी खत्म।" 
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वो व्यक्ति बिना कुछ बोले आगे बढ गया। 



:-) :-) :-)
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मंगलवार, सितंबर 08, 2015

जाओ बाबू, दरोगा बन जाओ ... (लघु कथा)

किसी ने उसे बता दिया था, कि "कलेट्टर साब के हियाँ चलजा, सब काम हो जाई"। 
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इसीलिए साहब के दरवाज़े पे बैठी थी। सुबह आठ बजे से बैठे-बैठे दुपहर के दो बज गए थे। सुतली के सहारे टिके चश्मे के भीतर धँसी, तरसती आँखों से उसने जाने कितने ही लोगों को भीतर जाते और बाहर आते देखा था। कम से कम बीसियों बार उसने खुद चपरासी से चिरौरी की थी, कि उसे अन्दर जाने दे। पर सब व्यर्थ गया। उसे यकीन हो चला कि कहीं कोई सुनवाई नहीं। 
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फिर भी आख़िरी बार उसने चपरासी से पूछा - "ए भईया, तनी देख न। साहब खाली भए ?" 
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"नहीं माता जी। साहब अभी खाना खाने गए हैं। अभी समय लगेगा। बैठो। नहीं तो जाओ, कुछ खा-पी के आना।" चपरासी ने उसे टालते हुए कहा। 
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साहब तो बस उठे ही थे जाने के लिए, आवाज़ सुन के बाहर आ गए - "क्या हुआ ? क्या बात है ?" 
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"सर ये बुढ़िया परेशान कर रही थी। अभी-अभी आई है, और, मिलना है-मिलना है चिल्ला रही है।" 
चपरासी ने खुद को बचाते हुए कहा। 
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"कहाँ से आई हो माता जी? अन्दर आ जाओ।" कलेक्टर साहब ने चपरासी को नज़रअंदाज़ करते हुए कहा, और खुद अन्दर चले। 

पीछे-पीछे बुढ़िया और उसके पीछे चपरासी कि कहीं कोई शिकायत ना कर दे बुढ़िया।" 

हम ओह पार से आ रहे हैं भईया।" बुढ़िया ने कहा।" 

यहाँ कब से बैठी हो?" साहब ने पूछा। 

"सर ये तो..." चपरासी ने कुछ सफाई देनी चाही।" 

तुम बाहर जाओ।" साहब की कड़कदार आवाज़ बिजली बन के गिरी, और चपरासी सरपट कमरे से बाहर निकल गया।" 

हाँ माता जी ...बताओ।" साहब ने बड़े ही आदर से पूछा। 
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बस फिर क्या था, अगले कुछ मिनटों में बुढ़िया के शब्दों ने उसकी भावनाओं पे जमी धूल की परतों को खुरच-खुरच के उतार दिया, और बरसों से सीने में दबा दर्द पिघल कर आँखों से बह चला। 
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साहब ने दो-एक फ़ोन किये और एक-आध लोगों को डाँट पिलाई। फ़िर बुढ़िया की तरफ़ मुड़ के बोले - 
"जाओ माता जी। तुम्हारा काम हो गया।" और उठने का उपक्रम किया। 
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बुढ़िया ने साड़ी के कोने की पोटली खोली और दस रुपये के कुछ फटे-पुराने नोट और सिक्के निकाल के कलेक्टर साब को देने लगी।" 

अरे ... ! ये मत किया करो माता जी। जाओ अब। कोई तुम्हे परेशान नहीं करेगा।" 
कहकर कलेक्टर साहब ने अपनी झेंप मिटाने की कोशिश की। 

बुढ़िया को सहसा विश्वास ही नहीं हुआ, उसने कहा - 
"खूब तरक्की करो भईया, बड़े हो जाओ बाबू, दरोगा बन जाओ।" 

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The End
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शनिवार, सितंबर 05, 2015

प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद


एक बेटा अपने वृद्ध पिता को रात्रि भोज के लिए एक अच्छे रेस्टॉरेंट में लेकर गया। 

खाने के दौरान वृद्ध और कमजोर पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया। रेस्टॉरेंट में बैठे दुसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को घृणा की नजरों से देख रहे थे लेकिन वृद्ध का बेटा शांत था। 

खाने के बाद बिना किसी शर्म के बेटा, वृद्ध को वॉश रूम ले गया। उसके कपड़े साफ़ किये, उसका चेहरा साफ़ किया, उसके बालों में कंघी की, उसे चश्मा पहनाया और फिर बाहर लाया। सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे। 

बेटे ने बिल पे किया और वृद्ध के साथ बाहर जाने लगा। तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने बेटे को आवाज दी और उससे पूछा ---
"क्या तुम्हे नहीं लगता कि यहाँ अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो ??" 


बेटे ने जवाब दिया--- "नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़ कर नहीं जा रहा।" 

वृद्ध ने कहा--- 
"बेटे, तुम यहाँ छोड़ कर जा रहे हो, 
प्रत्येक पुत्र के लिए एक सबक और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद" 
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रविवार, मार्च 15, 2015

जब गाँधी और गोडसे मुस्कुराये

दिल्ली-मुम्बई राजधानी एक्प्रेस, डब्बा, प्रथम श्रेणी ! दो अपरचित लोग ! 
एक लड़का, एक लड़की आमने-सामने की सीट पर हाथों में किताब लिये बैठे हैं । 
दोनों चोर नजरों से एक-दूसरे के किताब के कवर को देख रहे हैं .. 

लड़का पढ़ रहा है- "माई एक्सपेरिमेंट विद ट्रुथ" 
लड़की पढ़ रही है- "मी नाथूराम गोडसे बोलतोय" 

तलब दोनों में है बात करने की ! किताबों की च्वाईस को लेकर, पर अपरचितों में पहल का इंतेजार रहता है। जैसा आमतौर पे होता है, बात होती है तो खूब होती है, पर ये नहीं कि तब गाँधी सही थे या गोडसे ! न तो गाँधी की महानता पर प्रश्न उठा, न गोडसे की अँधी देशभक्ति पर। 

फिर लड़का बोला- "वह गाँधी को इसलिए पढ़ रहा है कि गोडसे को समझ सके" 
यह सुनकर लड़की मुस्कुराई- मैं भी तो गोडसे को इसलिए पढ़ रही हूँ, ताकि गाँधी को समझ सकूँ। 

लड़की उसी तरह मुस्कुराकर फिर बोली- मैं गाँधी के पोते की पोती हूँ । 
लड़का मुस्कुराया, मुस्कुराहट में झिझक है, थोड़ा रुककर बोला- "मैं गोडसे के भाई का पोता हूँ।" 

राजधानी एक्प्रेस के उस डब्बे में इतिहास ठहर गया, उस दुर्लभ संयोग पर दोनों के विचार मुस्कुराये ! 
आँखें मुस्कुराई,, मन और मन के बीच प्रेम का अंकुर सरसराया ! 


और 
वहाँ ऊपर आसमान में गाँधी और गोडसे मुस्कुराये यह सोचकर 
 इन दो बच्चों के बहाने दुनिया में यह संदेश जायेगा कि - 

"नफरत स्थाई नहीं होती"


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End
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बुधवार, दिसंबर 24, 2014

इंटेलिजेंस ब्यूरो भर्ती में महिला उम्मीदवार

इंटेलिजेंस ब्यूरो में एक उच्च पद हेतु भर्ती की प्रक्रिया चल रही थी। 
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अंतिम तौर पर केवल तीन उम्मीदवार बचे थे जिनमें से किसी एक का चयन किया जाना था। इनमें दो पुरुष थे और एक महिला। फाइनल परीक्षा के रूप में कर्तव्य के प्रति उनकी निष्ठा की जांच की जानी थी। 
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पहले आदमी को एक कमरे में ले जाकर परीक्षक ने कहा –”हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि तुम हर हाल में हमारे निर्देशों का पालन करोगे चाहे कोई भी परिस्थिति क्यों न हो।” फिर उसने उसके हाथ में एक बंदूक पकड़ाई और दूसरे कमरे की ओर इशारा करते हुये कहा – ”उस कमरे में तुम्हारी पत्नी बैठी है। जाओ और उसे गोली मार दो।” 
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”मैं अपनी पत्नी को किसी भी हालत में गोली नहीं मार सकता”- आदमी ने कहा।” 
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तो फिर तुम हमारे किसी काम के नहीं हो। तुम जा सकते हो।” – परीक्षक ने कहा। 
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अब दूसरे आदमी को बुलाया गया। ” .. 
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परीक्षक ने उसके हाथ में एक बंदूक पकड़ाई और दूसरे कमरे की ओर इशारा करते हुये कहा – ”उस कमरे में तुम्हारी पत्नी बैठी है। जाओ और उसे गोली मार दो।” 
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आदमी उस कमरे में गया और पांच मिनट बाद आंखों में आंसू लिये वापस आ गया - ”मैं अपनी प्यारी पत्नी को गोली नहीं मार सका। मुझे माफ कर दीजिये। मैं इस पद के योग्य नहीं हूं।” 
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अब अंतिम उम्मीदवार के रूप में केवल महिला बची थी। उन्होंने उसे भी बंदूक पकड़ाई और उसी कमरे की तरफ इशारा करते हुये कहा – ”उस कमरे में तुम्हारा पति बैठा है। जाओ और जाकर उसे गोली से उड़ा दो।” 
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महिला ने बंदूक ली और कमरे के अंदर चली गई। कमरे के अंदर घुसते ही फायरिंग की आवाजें आने लगीं । लगभग 11 राउंड फायर के बाद कमरे से चीख पुकार, उठा पटक की आवाजें आनी शुरू हो गईं। यह क्रम लगभग पन्द्रह मिनटों तक चला ,उसके बाद खामोशी छा गई। 
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लगभग पांच मिनट बाद कमरे का दरवाजा खुला और माथे से पसीना पोंछते हुये महिला बाहर आई। बोली – ”तुम लोगों ने मुझे बताया नहीं था कि बंदूक में कारतूस नकली हैं। मजबूरन मुझे उसे पीट-पीट कर मारना पड़ा..!!! 
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The End 
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मंगलवार, दिसंबर 23, 2014

इंटेलिजेंट एंसर इन इंटरव्यू

साक्षात्कार चल रहा था ! नौकरी बड़ी अच्छी और अच्छे वेतन वाली थी ! साक्षात्कार में कई युवक आये हुए थे ! सभी युवक अच्छे पढ़े लिखे एवं सुसंस्कृत थे ! चपरासी ने आकर पहले युवक को आवाज लगाई ! 
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युवक अपनी फ़ाइल ले कर चेम्बर में घुसा और बोला - 'में आई कमिंग सर ?' साक्षात्कार लेने वाले ने कहा "यस कम इन " थैंक यू कहकर युवक अंदर चला गया और सामने वाली कुर्सी पर बेठ गया ! 
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साक्षात्कार लेने वाले उसकी फ़ाइल देखीं वैरी गुड कहकर वापस दे दी ,,, और पुछा :- 
"एक बात बताइये आप कही जा रहे है आपकी कार टू सीटर है। आगे चलने पर एक बस स्टैंड पर आपने देखा कि तीन व्यक्ति बस के इंतजार में खड़े है। उन में से एक वृद्धा जो कि करीब 90 वर्ष की है तथा बीमार है अगर उसे अस्पताल नहीं पहुचाया गया तो इलाज न मिल सकने के कारण मर भी सकती है। दूसरा आपका एक बहुत ही पक्का मित्र है जिसने आपकी एक समय बहुत मदद कि थी जिसके कारण आप आज का दिन देख रहे है। तीसरा इंसान एक बहुत ही खूबसूरत युवती है जिसे आप बेहद प्रेम करते है जो आपकी ड्रीम गर्ल है अब आप उन तीनो में से किसे लिफ्ट देंगे ? आपकी कार में केवल एक ही व्यक्ति आ सकता है।"" 
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युवक ने एक पल सोचा फिर जवाब दिया" सर में अपनी ड्रीम गर्ल को लिफ्ट दूंगा " 
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साक्षात्कार लेने वाले पुछा - क्या ये ना इंसाफी नहीं है ? 
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युवक बोला नो सर वृद्धा तो आज नहीं तो कल मर जायेगी ,,दोस्त को में फिर भी मिल सकता हूँ पर अगर मेरी ड्रीम गर्ल एक बार चली गई तो फिर में उससे दुबारा कभी नहीं मिल सकूंगा ! 
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साक्षात्कार लेने वाले ने मुस्कुरा कर कहा वेरी गुड में तुम्हारी साफ साफ बात सुन कर प्रभावित हुआ अब आप जा सकते है ! थैंक यू कहकर युवक बाहर निकल गया ! 
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साक्षात्कार लेने वाले ने दूसरे प्रत्याशी को बुलाने के लिए चपरासी को कहा ! साक्षात्कार लेने वाले ने सभी प्रत्याशिओं से उपरोक्त प्रश्न को पुछा विभिन्न प्रत्याशियों ने विभिन्न उत्तर दिए ! किसी ने वृद्धा को लिफ्ट देने किसी ने दोस्त को लिफ्ट देने कि बात कही ! 
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जब एक प्रत्याशी से ये ही प्रश्न पुछा तो उसने उत्तर दिया -"सर में अपनी कार की चाबी अपने दोस्त को दूंगा और उससे कहूंगा कि वो मेरी कार में वृद्धा को लेकर उसे अस्पताल छोड़ता हुआ अपने घर चला जाये ! मैं उससे अपनी कार बाद में ले लूंगा और स्वयं अपनी ड्रीम गर्ल के साथ बस में बेठा क़र चला जाऊँगा ! 
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साक्षत्कार करने वाले ने उठ क़र उस से हाथ मिलाया और कहा यू आर सलेक्टेड ! 
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थैंक यू सर कह क़र युवक मुस्कुराता हुआ बाहर आ गया ! 
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 साक्षत्कार समाप्त हो चुका था !
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The End
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रविवार, अगस्त 24, 2014

बिल्ली के गले में घटी ...

प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी चूहों का चिंतन शिविर चल रहा था ! चर्चा भी वही ,,,,घोषणाएं भी वही,,,समस्याएं भी वही ... कहीं कुछ भी नया नहीं !
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अचानक ही एक सुशिक्षित युवा चूहा खड़ा हुआ और बोला -
'सभापति महोदय मैं भी कुछ कहना चाहता हूँ'
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सभापति ने माईक संभाला और गला खखारकर बोले - 'हाँ कहो'
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युवा चूहा बोला :- बिल्ली के गले में घंटी बाँधने का विचार हमारे दादा-परदादा के समय व्यक्त किया गया था ... मैं जानना चाहता हूँ कि उस सम्बन्ध में क्या प्रगति हुयी ?
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उत्साहित युवा चूहे की बात सुनकर सभा में उपस्थित सभी गणमान्य चूहे हंसने लगे ! एक बुजुर्ग चूहा खड़ा हुआ :- हमें बिल्ली से खतरा हमेशा बना रहेगा ,,, इस बारे में सभी पुराने उपाय सोचे जा चुके हैं ...पुरानी से पुरानी किताबों का अध्ययन कर लिया गया है ... इस बारे में चर्चा करके शिविर का कीमती समय नष्ट करने से कोई फायदा नहीं है
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युवा चूहे ने एक बार पुनः अपनी बात रखी :- सभापति महोदय मुझे एक कोशिश की अनुमति प्रदान करें !
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शिविर में उपस्थित सभी चूहों के चेहरों पर तंज उभर आया ! सभापति ने चर्चा को विराम देने के उद्देश्य से कहा :- ठीक है ... ठीक है .. आप करें कोशिश !
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चिंतन शिविर के अगले दिन युवा चूहा उत्साहित मुद्रा में बोला :- सभापति महोदय मैंने महल की सबसे खतरनाक बिल्ली के गले में घंटी बाँध दी है !
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सभापति महोदय और समस्त उपस्थित चूहों को यकीन नहीं हुआ ... दो-तीन चूहों को तत्काल जांच के लिए भेजा गया !
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थोड़ी देर बात ही जांच करने गए चूहे वापस आये और हर्षमिश्रित आवाज़ में बोले - हाँ महोदय ...बात सही है .. बिल्ली के घंटे में घंटी बंधी हुयी है ,,,बिल्ली जैसे ही चलती है घंटी की आवाज आने लगती है !
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सभापति महोदय ने युवा चूहे से जिज्ञाषा प्रकट की :- सभी लोग इस बात को जानना चाहते हैं कि तुमने ये काम किया कैसे ?
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युवा चूहा खड़ा हुआ और बोला :- दरअसल आप लोग हर समस्या का समाधान पुराने तरीकों से खोजते रहे हैं ... हमारे दादा-परदादा ने क्या किया ....हमारी पुरानी किताबों में क्या लिखा है .. बस उसी का अध्ययन करते रहे .. हम क्यों नहीं नयी तरह से सोचते ... क्यों नहीं समाधान के लिए नए प्रयास करते ?
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सभापति महोदय उबासी लेते हुए बोले :- भाषण की जरुरत नहीं ...सिर्फ ये बताओ कि घंटी बाँधी कैसे ?
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युवा चूहा बोला :- मैंने गंभीरता से सोचा तो एक आसान तरीका सूझा ... मैं केमिस्ट के यहाँ से 3-4 नींद की दवा ले आया ... उस नींद की दवा को दूध में मिला दिया और एक कटोरी में दूध रखकर बिल्ली के घर के पास रख दिया ..... कुछ समय बाद बिल्ली वहां आई, उसने दूध पिया ... मैं छुपकर इन्तजार करता रहा ... जैसे ही बिल्ली गहरी नींद में हुयी .. बस मैंने जाकर अच्छी तरह से बिल्ली के गले में घंटी बाँध दी !!
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सभापति महोदय बोले :- हमारे पूर्वज वाकई बहुत महान थे .. उनका ही उपाय काम आया !
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The End
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सोमवार, अगस्त 11, 2014

आदमी और बाजार


वह जब माळ के भीतर दूकान में घुसा तो दूकान वाले ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया !
ऐसा पहली बार नहीं हुआ, पता नहीं उसके चेहरे में ऐसा क्या है कि वो दूकानदार में अपनी दिलचस्पी नहीं जगा पाता !
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दुकानदार मानकर चलता है कि ये कुछ नहीं खरीदने वाला, लेकिन वो कहना चाहता है कि मैं नमक, हल्दी, चावल और साबुन तो खरीदता ही हूँ ,,, और भी तमाम चीजें ! मैंने कंप्यूटर भी खरीदा है और चश्मा तो हर साल खरीदता हूँ !
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बहरहाल दूकान वालों को देखकर यह लगता है कि वे पहले से ही जानते हैं कि वो कुछ खरीदने वाला नहीं है ! इस वजह से वो दूकान में उड़ा-उड़ा सा रहता है और कई बार तो भूल भी जाता है कि वो दूकान में आया तो किसलिए !
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दुकानदार लोग शायद उसे इस तरह के आदमी के तौर पर देखते हैं जिसका काम बिना खरीदे ही चल सकता है ! वे नहीं चाहते कि उस जैसा आदमी दूकान में दाखिल हो ! वे नहीं चाहते कि ऐसा आदमी बाजार में दिखे, जिसका काम बिना खरीदे ही चल जाता हो !
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शनिवार, अगस्त 09, 2014

भाई-चारा संवाद

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भूमिका :
ये एक आँखों देखा, कानों सुना संवाद है ... मैं कैसरबाग में एक मामूली से होटल में चाय पीने रुका था तो आगे की टेबल पर दो लोग बातें कर रहे थे ! उनकी आवाज साफ़ सुनाई दे रही थी, उधारी का मामला था ... ख़ास बात ये थी कि लेनदार रिरिया रहा था और देनदार गरज रहा था !  आप भी जरा भाई-चारा संवाद सुनिए -
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-- भाई जी बहुत जरुरत थी रुपयों की
-- अबे तो ले लेना ,,, रुपये कहीं भागे जा रहे हैं

-- भाई जी आपने दस दिन के लिए रुपये लिए थे, छह महीने हो गए
-- तुम तो साले को बहुत चिरइन्धे आदमी हो, पैसा क्या लिया ,, तुमने तो ## में चरस बो दिया ,, हद्द है 

-- नहीं भाई जी ऐसी बात नहीं है, घर की छत पर एक कमरा बनवा रहे हैं, इसलिए बहुत सख्त जरुरत थी रुपयों की
-- अबे तो ठीक है न, परसों पेमेंट आने वाला है, ले लेना, अब साले तुम मेरे दिमाग का दही न करो .. चाय-समोसा मंगवाओ 

(2 चाय, 2 प्लेट समोसे का आर्डर देने के बाद)
-- भाई जी आप हमेशा ऐसे ही टाल देते हो, हर बार कल-परसों करते-करते छह महीने निकल गए
-- अबे भों## के तुमसे तो साला रुपया लेना गुनाह हो गया, पहले मालुम होता कि तुम इतने बड़े घिस्सू हो तो किसी दुसरे से रुपया ले लेते 

-- भाई जी आपने तीस हजार दस दिन के लिए कहे थे, साथ में ब्याज देने को भी बोला था, मुझे ब्याज नहीं चाहिए, आप आधा-आधा करके ही दे दो
-- कउनो टटपुन्जिया समझे हो का बे ? भों## के ऐसे हजारों रुपये मूत देता हूँ ... मेरा खुद लाखों रुपया फंसा हुआ है

-- भाई जी आप मेरी मज़बूरी समझो, आप अभी 5-10 हजार ही दे दो
-- अबे आदमी हो कि पैजामा ... कहा न पेमेंट आने वाला है, ले लेना
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पता नहीं कब तक ये भाई-चारा संवाद चलता रहा !
मुझे देर हो रही थी ,,,,
मैंने चाय के पैसे दिए और लेनदार की ओर हमदर्दी भरी नजर डालकर निकल आया !
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The End 
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शुक्रवार, अगस्त 08, 2014

बोरिंग कथा ऑफ कम्बल


साल का अंत होने वाला था। बेइंतिहा सर्दी थी। इस सर्दी की वजह से एक आदमी नींद से उठकर दुकानों के बरामदे की सीढ़ियों पर बैठ गया। फिर वह चलने लगा, लेकिन इस तरह सर्दी और लगने लगी। वह दौड़ने लगा - पुराना नुस्खा था कि दौड़ने पर पसीना निकलता है। शहर के एक बड़े हिस्से में वह दौड़ता रहा। उसे पसीना आने लगा। सर्दी कम लगने लगी। लेकिन वह कब तक दौड़ता। वह थककर बैठ गया। धीरे-धीरे पसीने की वजह से सर्दी और तेज लगने लगी !
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उसने देखा कि एक आदमी कम्बल ओढ़कर सो रहा है ! उसने उसका कम्बल खींचा और उसे लेकर भागने लगा ! जिसका कम्बल लेकर वह भागा था, वह उसके पीछे भागने लगा ! बीच-बीच में वह उसे गालियाँ भी दे रहा था ! जो कबल लेकर भाग रहा था, उसके हाथ से कम्बल गिर गया और एक नाले में चला गया !
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अब दोनों एक दुसरे के सामने थे ! दोनों भिड गए और एक दुसरे को मारते रहे ! इस बीच एक तीसरा आदमी आ गया ! वह भी सर्दी की वजह से सो नहीं पा रहा था ! जब उसने देखा कि कम्बल नाले में गिरा है तो वह नाले में उतर गया ! इधर दोनों एक-दुसरे को ईंट-पत्थरों से मारते रहे, जिनमें एक पहले और दूसरा बाद में मर गया ! तीसरा गहरे नाले की कीचड में डूब गया !
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सुबह न तो पुलिस और न अखबार वाले कम्बल के साथ इन तीनों की मौत का सबंध जोड़ पाए ! अलबत्ता और कोई कपडा आस-पास न होने की वजह से पुलिस ने तीनों के शवों को फिलहाल तो उस कम्बल पर लिटाया, जो नाले के बगल में पुलिस वालों को मिल गया था !
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तीन दिन बाद एक कूड़ा बीनने वाला लड़का बहुत डरते-सहमते हुए थाने में यह पूछने आया कि जो कम्बल नाले के पास पुलिस वालों को मिला था, वह उसका था ! पुलिस ने उसको थाने में बैठा लिया और पूछ-ताछ शुरू हुयी कि वह उसे मिला कहाँ था ! पता ये लगा कि उसने वह कम्बल एक घर से चुराया था - किसी का कम्बल घर के सामने धुप में सूख रहा था, उसने उठा लिया और चलता बना ! पुलिस ने कूड़ा बीनने वाले लड़के को हवालात में बंद करके इतना मारा कि लड़का मर गया ! पुलिस ने अपनी जान बचाने के लिए रात में उस मरे हुए लड़के की लाश को फुटपाथ पर छोड़ दिया और उसे उसके कम्बल से ढक दिया
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एक आदमी जो सर्दी से ठिठुर रहा था, उसने मरे हुए लड़के के शव के ऊपर से कम्बल उठाया और आगे निकल गया, फिर वह भागने लगा यह सोचकर कि कोई उसका पीछा कर रहा है ! भागते हुए वह रेल की पटरियां पार कर रहा था कि वह रेलगाड़ी की चपेट में आ गया और मर गया ! एक लड़का जो वहां कूड़ा बीना करता था, उसने वह कम्बल उठा लिया और यह देखते हुए कि कोई उसे देख तो नहीं रहा है, वह पटरियां पार करके घर आ गया !
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माँ ने कम्बल देखकर बेटे से कहा - तुझे यह क्यों नहीं दिखा कि ये कम्बल उसके भाई का है, जो दो दिनों से लापता है ! माँ और बेटा अपने बेटे और भाई की तलाश में कम्बल लेकर निकल पड़े, यह सोचकर कि अगर वो मिल गया तो कम्बल ओढ़ाकर उसे घर ले आयेंगे ! मा-बेटे रात के बियाबान में खोजते रहे ....खोजते रहे ...
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इस बीच पता नहीं कम्बल कब कहाँ कंधे से खिसककर गिर गया .....
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The End
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बुधवार, जुलाई 02, 2014

जिन्होंने जन्म दिया

75 साल की उस बुढ़िया माँ का वजन लगभग 40 किलो होगा !
आज जब तबियत बिगड़ने पर वो डॉक्टर को दिखाने गयी ! 


डॉक्टर ने कहा ' माताजी आप हेल्थ का ख्याल रखिये ! आप का वजन जरूरत से ज्यादा कम है !! आप खाने में जूस, सलाद, दूध, फल, घी, हेल्थी फ़ूड लिजियें ! नहीं तो आपकी सेहत दिनों दिन गिरती जायेगी और हालत नाजुक हो जायेंगी ! '

उसने भारी मन से डॉक्टर की बात को सुना और बाहर निकल कर सोचने लगी, इतनी महंगाई में ये सब कहाँ से आएगा..? और पिछले पचास सालों में, फ्रूट, घी , मेवा घर में लाया कौन है..?

बहुत ही मामूली पेंसन से जो थोडा बहुत पैसा मिलता है उससे घर के जरुरी सामान तो पति ले आतें है, लेकिन फल, जूस, हरी सब्जी, ये सब पति ने कभी ला कर नहीं दिया, ....और खुद भी कभी ये सब खरीदने की हिम्मत नहीं कर सकी....क्यूंकि जब भी मन करता कुछ खाने का, खाली पर्स हमेशा मुंह चिढाने लगता....

नागपुर (विदर्भ) जैसे शहर में ... मामूली सी नौकरी में और जिंदगी की गहमागहमी में सारी जमा पूंजी, पति का PF, घर की सारी अमानत, संपदा, गहने जेवर सब एक बेटे और दो बेटियों की परवरिश, पढाई लिखाई शादी में में सब कुछ खत्म हो गया...

दूर दिल्ली में रह रहा एक बहुत बड़ी कंपनी में मैनेजर और मोटी तनख्वाह उठा रहा बेटा भी तो खर्चे के नाम पर सिर्फ पांच सौ रुपये देता है...वो भी महीने के..... बेटियों से अपने दुःख माँ ने सदा छुपाये है...उन्हें कभी अपने गमो में शामिल नहीं किया...आखिर ससुराल वाले क्या सोचेंगे.....???

अब बेटे के भेजे इन पांच सौं रुपये में बूढ़े माँ बाप तन ढके या मन की करें ?????

उसने सोचा चलो एक बार बेटे को डॉक्टर की रिपोर्ट बता दी जाए.. उसने बेटे को फ़ोन किया और कहा - बेटा डॉक्टर ने बताया है की विटामिन, खून की की कमी, कमजोरी से से चक्कर आये थे .... इसी लिए खाने में सलाद, जूस, फ्रूट, दूध, फल , घी , मेवा लेना शुरू करो !!

बेटा - "माँ आप को जो खाना है खाओ , डॉक्टर की बात ना मानों.... !!"

माँ ने कहा – बेटा, थोड़े पैसे अगर भेज देता तो ठीक रहता..... !!

बेटा - " माँ इस माह मेरा बहुत खर्चा हो रहा है, कल ही तेरी पोती को मैंने फिटनेस जिम जोईन कराया है, तुझे तो पता ही है, वो कितनी मोटी हो रही है, इसी लिए जिम ज्वॉइन कराया है... ...उसके महीने के सात हजार रुपये लगेंगे...जिसमे उसका वजन चार किलो हर माह कम कराया जाएगा..... और कम से कम पांच माह तो उसे भेजना ही होगा.......पैंतीस हजार का ये खर्चा बैठे बिठाये आ गया....अब जरुरी भी तो है ये खर्चा...!! आखिर दो तीन साल में इसकी शादी करनी है और आज कल मोटी लड़कियां, पसंद कोई करता नहीं.....!! "

माँ ने कहा - " हाँ बेटा ये तो जरुरी था.....कोई बात नहीं वैसे भी डॉक्टर लोग तो ऐसे ही कुछ भी कहतें रहते है.....चक्कर तो गर्मी की वजह से आ गयें होंगे, वरना इतने सालों में तो कभी ऐसा नहीं हुआ ..... खाना तो हमेशा से यही खा रही हूँ मैं...!!!"

बेटा - "हाँ माँ.....अच्छा माँ अभी मैं फोन रखता हूँ ....बेटी के लिए डाइट चार्ट ले जाना है और कुछ जूस, फ्रूट और डायट फ़ूड भी ....आप अपना ख्याल रखना !!"

फोन कट गया....माँ ने एक ग्लास पानी पिया...और साडी पर फॉल लगाने मे लग गयी .... साड़ी में फॉल लगाने के माँ को पन्द्रह रुपये मिलेंगे....इन रुपयों से माँ आज गणेश पूजा के लिए बाजार से लड्डू खरीदेंगी....आज गणेश चतुर्थी जो है !!
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मंगलवार, जुलाई 01, 2014

राजवैद्य की जादुई पुडिया

एक राजवैद्य थे, सिर्फ राज-परिवार से सम्बंधित लोगों का ही उपचार करते थे ! समय बीता,,,, राजा-जमीदार कहने भर को रह गए ! ठाठ-बाट में पल रहे राजवैद्य जी को महसूस हुआ कि अब एक खूंटे से बंधे रहकर कुछ नहीं हो सकता !

राजवैद्य जी ने आगामी योजना सोच ली ! 


उनके तमाम चेले-चपाटों ने नगर भर में बैनर-पोस्टर टांग दिए ! गाड़ियों से घूम-घूमकर एनाउंस करवा दिया गया कि नगरवासियों के हर तरह का रोग दूर करने के लिए राजवैद्य जी ने फैसला किया है ! बारह वर्षों तक राजपरिवार में जादू दिखाने वाला जादूगर अब नगरवासियों की सेवा करेगा !


निश्चित तारीख को राजवैद्य पधारे ! पूरा नगर उमड़ पड़ा ,,, ऐसा लगा मानो जनसैलाब बह रहा हो ! राजवैद्य और उनके चेले सभी रोगियों को पांच सौ रुपये की एक खुराक पुडिया दे रहे थे, लोग अपनी जरुरत और हैसियत के मुताबिक़ पुडिया ले रहे थे ,,कोई दो, कोई चार ,,,, कोई दस ! दवा महंगी जरुर थी लेकिन सबको रोग मुक्त होना था तो दिल पे पत्थर रख के दवा ले रहे थे ! सभी रोगियों को एक बात कायदे से समझा दी गयी थी कि दवा किस विधि से खानी है ये बात राजवैद्य जी शिविर समापन पर बताएँगे !
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खैर तीन दिन तक सुबह से रात तक जमकर दवा वितरण का कार्यक्रम चला !


जब लगभग सारे रोगी निपट गए तो राजवैद्य बाहर आये और जनता को संबोधित किया : 


"बहुत प्रसन्नता की बात है कि आप सब ने मिलकर इस रोगमुक्त शिविर कार्यक्रम को सफल बनाया ! मेरे लिए ये मिटटी मेरी माँ है, इसकी सेवा करना ही मेरा कर्तव्य है ! मेरा अब दुसरे नगर के प्रस्थान का समय हो गया है ,,, जाते-जाते आपको दी गयी औषधि के विषय में बता दूँ ,,, ये दवा काफी कडवी है लेकिन रोगमुक्त होने के लिए इतना तो आपको सहन करना ही होगा ! एक और विशेष बात इस दवा को प्रातः चार बजे खाली पेट "स्वर्ण भस्म" के साथ खाना है ! अब हमें आज्ञा दीजिये ,,, नमस्कार !;
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राजवैद्य जी की घोडा गाड़ी तैयार खडी थी ,,, चेलों को लेकर उड़ गए !
जनता अभी भी मुंह बाए ताक रही थी !
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डिस्क्लेमर : 
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इस कथा का सम्बन्ध किसी भी घटना अथवा व्यक्ति से नहीं है , अगर किसी को ऐसा आभास होता है तो वो बाबा रामदेव के शिविर में जाकर अपना इलाज कराये !

मंगलवार, दिसंबर 10, 2013

खुरपेंची लाल महान

क कालोनी टाईप मोहल्ला था ! वहीँ के लोगों ने स्थानीय रख-रखाव व अन्य कार्यक्रमों के लिए एक मोहल्ला समिति बनायी और बुजुर्ग रईस अहमद को सर्व सम्मति से अध्यक्ष बना दिया था ! जैसा कि अन्य अच्छे मोहल्लों में होता है वैसा ही वहाँ भी माहौल था - जमादार सड़कें साफ़ करता, कूड़े वाला कूड़ा ले जाता, माली पार्क का रख-रखाव करता, रात में एक चौकीदार डंडा लेके सीटी बजाता घूमता, साल में एक-दो बार खेल-कूद के आयोजन संपन्न होते !

सी मोहल्ले में खुरपेंची लाल भी थे, गजब के नुकतेबाज...हर बात में कमियां गिनाते, सबकी हरामखोरी और मक्कारी का रोना रोते, मोहल्ला समिति के फंड में गड़बड़ी की बात करते ! लोग खुरपेंची लाल की क्रांतिकारी बातों से बहुत प्रभावित होते ! तमाम 'बिजी विदआउट वर्क' वाले छुटभैय्ये खुरपेंची लाल के प्रभाव में आते चले गए !

क दिन अचानक ही मोहल्ला समिति की मीटिंग बुलायी गयी और बुजुर्ग रईस अहमद की जगह खुरपेंची लाल को अध्यक्ष चुन लिया गया ! रईस अहमद ने भी मन ही मन राहत की सांस ली कि इस 'थैंकलेस जॉब' से छुट्टी मिली !

मोहल्ले वालों ने खुरपेंची लाल के अध्यक्ष बनने पर खूब ढोल-नगाड़े बजे और जिंदाबाद के नारों के साथ जुलूस निकाला ! हफ्ता-दस दिन तो जश्न और बधाई में गुजर गए ! उसके बाद क्रांतिकारी परिवर्तन का दौर शुरू हुआ !

खुरपेंची लाल ने पार्क के माली को हरामखोरी से मुक्त करते हुए कहा कि मेरे कई दोस्त एग्रीकल्चर, और फारेस्ट डिपार्टमेंट में हैं, उनसे कहूंगा तो दो-तीन माली आकर पार्क की काया पलट कर देंगे, आप लोग देखना ये पार्क फूलों से भर जाएगा !

फिर निकम्मे चौकीदार को जिम्मेदारी से मुक्त करते हुए कहा - "सिक्योरिटी सर्विस से बात करके मोहल्ले में वर्दीधारी सिक्योरिटी गार्ड नियुक्त करवाऊंगा, चोर-बदमाश तो सात फुटे सिक्योरिटी गार्ड को देखते ही भाग जायेंगे !"

सके उपरान्त जमादार और कूड़े वाले को बुलाकर उनकी काहिली गिनाई गयी, दोनों को जब उनकी जिम्मेदारी का एहसास कराया गया तो दोनों एक साथ बोले - "बाबू जी आप किसी और को देख लो !" खुरपेंची लाल ने तमक के कहा - "भागो ~  यहाँ तुम जैसे काहिलों की कोई जरुरत नहीं, कल ही नगर निगम जाऊँगा और सब इंतजाम हो जाएगा !"
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खैर !!!
इस तरह के तमाम क्रांतिकारी कदम खुरपेंची लाल द्वारा उठाये गए !
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दिन पर दिन बीतते गए !
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मोहल्ले का पार्क उजाड़ हो गया !
गलियों में गंदगी और कूड़ा जमा रहता है !
जब-तब छोटी-मोटी चोरियों की खबर भी सुनायी देती हैं !
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खुरपेंची लाल आज भी पनवाड़ी और चाय की दूकान पे सबकी हरामखोरी और निकम्मेपन को गालियां देते दिख जाते हैं
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The End
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शुक्रवार, अगस्त 09, 2013

पुलिसिया चरितनामा

एक दरोगा जी का मुंह लगा नाऊ पूछ बैठा - "हुजूर पुलिस वाले रस्सी का साँप कैसे बना देते हैं ?" दरोगा जी बात को टाल गए लेकिन नाऊ ने जब दो-तीन बार यही सवाल पूछा तो दरोगा जी ने मन ही मन तय किया कि इस भूतनी वाले को बताना ही पड़ेगा कि रस्सी का साँप कैसे बनाते हैं ! लेकिन प्रत्यक्ष में नाऊ से बोले - "अगली बार बताऊंगा !"

इधर दरोगा जी के जाने के दो घंटे बाद ही 4 सिपाही नाऊ की दूकान पर छापा मारने आ धमके - "मुखबिर से पक्की खबर मिली है, तू हथियार सप्लाई करता है,,,तलाशी लेनी है दूकान की !" तलाशी शुरू हुयी ... एक सिपाही ने नजर बचाकर हड़प्पा की खुदाई से निकला जंग लगा हुआ असलहा छुपा दिया ! दूकान का सामान उलटने-पलटने के बाद एक सिपाही चिल्लाया - "ये रहा रिवाल्वर" 

छापामारी अभियान की सफलता देख के नाऊ के होश उड़ गए - "अरे साहब मैं इसके बारे में कुछ नहीं जानता ....आपके बड़े साहब भी मुझे अच्छी तरह पहचानते हैं !"

एक सिपाही हड़काते हुए बोला - "साहब जी का नाम लेकर बचना चाहता है ? साले सब कुछ बता दे कि तेरे गैंग में कौन-कौन है ... तेरा सरगना कौन है ... तूने कहाँ-कहाँ हथियार सप्लाई किये,,, कितनी जगह लूट-पाट की ... तू अभी थाने चल !"

थाने में दरोगा साहेब को देखते ही नाऊ पैरों में गिर पड़ा - "साहब बचा लो ... मैंने कुछ नहीं किया"

दरोगा ने नाऊ की तरफ देखा और फिर सिपाहियों से पूछा - "क्या हुआ ?"

सिपाही ने वही जंग लगा असलहा पेश कर दिया - "सर जी इसकी दूकान से ही ये रिवाल्वर मिली है, मुखबिर से पता चला था कि इसका गैंग हथियार सप्लाई करता है .. " 

दरोगा सिपाही से - "तुम जाओ मैं पूछ-ताछ करता हूँ !"

सिपाही के जाते ही दरोगा हमदर्दी से बोले - "ये क्या किया तूने ? 

नाऊ घिघियाया - "सरकार मुझे बचा लो ... !"

दरोगा गंभीरता से बोला - "देख ये जो सिपाही हैं न ... साले एक नंबर के कमीने हैं .. मैंने अगर तुझे छोड़ दिया तो ये साले मेरी शिकायत ऊपर अफसर से कर देंगे ... इन कमीनो के मुंह में हड्डी डालनी ही पड़ेगी ... मैं तुझे अपनी गारंटी पर दो घंटे का समय देता हूँ .. जाकर किसी तरह बीस हजार का इंतजाम कर .. इनको दे दूंगा तो साले मान जायेंगे !"

नाऊ रोता हुआ बोला - "हुजूर मैं गरीब आदमी बीस हजार कहाँ से लाऊंगा ?"

दरोगा डांटते हुए बोला - "तू मेरा अपना है इसलिए इतना सब कर रहा हूँ ... कोई और होता तो अब तक जेल पहुँच गया होता...जल्दी कर बाद में मैं कोई मदद नहीं कर पाऊंगा"

रोते-कलपते नाऊ ने घर से अम्मा के गहने लिए और चौक जाकर एक ज्वैलर्स के यहाँ बेचकर किसी तरह बीस हजार रुपये इकट्ठे किये और थाने में दरोगा जी को थमा दिए ! 

दरोजा जी ने रुपयों को संभालते हुए पूछा - "कहाँ से लाया ये रुपया ?" 

नाऊ ने ज्वैलर्स के यहाँ जेवर बेचने की बात बतायी तो दरोगा जी ने सिपाही से कहा - "जीप निकाल और नाऊ को हथकड़ी लगा के जीप में बैठा ले .. दबिश पे चलना है !" 

फर्राटे भारती पुलिस-जीप चौक में उसी ज्वैलर्स के यहाँ रुकी ! सिपाही के साथ दरोगा जी ने दूकान के अन्दर पहुँचते ही ज्वैलर्स को रुआब में लिया - "चोरी का माल खरीदने का धंधा कब से कर रहे हो ? 

ज्वैलर्स सिटपिटाया - "नहीं दरोगा जी ... आपको किसी ने गलत जानकारी दी है .. !"

दरोगा ने डपटते हुए कहा - "चुप ~~ बाहर देख जीप में हथकड़ी लगाए शातिर चोर बैठा है...कई साल से पुलिस को इसकी तलाश थी..इसने तेरे यहाँ जेवर बेचा है कि नहीं ? तू तो जेल जाएगा ही..दूकान का सारा माल भी जब्त होगा !" 

ज्वैलर्स ने जैसे ही बाहर पुलिस जीप में हथकड़ी पहले नाऊ को देखा तो उसके होश उड़ गए, तुरंत हाथ जोड़ लिए - "दरोगा जी जरा मेरी बात सुन लीजिये ! 

कोने में ले जाकर मामला एक लाख में सेटल हुआ ! दरोगा ने एक लाख की गड्डी जेब में डाली और नाउ के गहने हासिल किये फिर ज्वैलर्स को वार्निंग दी - "तुम शरीफ आदमी हो इसलिए छोड़ रहा हूँ..आगे कोई शिकायत न मिले !" इतना कहकर दरोगा जी और सिपाही जीप पर बैठ के रवाना हो गए !

थाने में दरोगा जी मुस्कुराते हुए पूछ रहे थे - "साले तेरे को समझ में आया रस्सी का सांप कैसे बनाते हैं"

नाऊ सिर नवाते हुए बोला - "हाँ माई-बाप समझ गया !"

दरोगा हँसते हुए बोला - "जा भूतनी के ले संभाल अपनी अम्मा के गहने और जाते-जाते एक बात कायदे से समझ ले ... हम रस्सी का सांप ही नहीं बल्कि अजगर...मगरमच्छ सब बनाते हैं ... बस असामी बढ़िया होना चाहिए !" 
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डिस्क्लेमर :
इस किस्से का सम्बन्ध भारत की पुलिस से नहीं है ... उत्तर प्रदेश से भी नहीं है 
और लखनऊ की पुलिस से तो कतई नहीं है ! 
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लेखक : प्रकाश गोविन्द
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फेसबुक मित्रों द्वारा की गयीं कुछ प्रतिक्रियाएं
bar
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  • aaj hindustaan ki police! matbal hi nai! inni shareef poilice ki sharref ko badmaash bana de!
  • hahahaha:-D:-D
    bht he bdhiya Vyang hai..
  • ha ha ha ha ......waise aapko bata dun
    ye kissa nahi hai  ……. hamaari police isse kahin jyada kaabil hai
  • bilkul boss .... hamari police ki kaabiliyat par kisi ko shak nahi  :-)
  • khud pulishhhhh ko bhi nhi :-)
  • maja aa gaya  govind ji
  • acchi vyakhya aur sacchai ke kafi karib......jaha tak aapne kaha ki is kisse ka samband bharat aur up se nahi hai.....arey ye to aur bade karname kar sakte hai.....bhai......
  • दरोगा हँसते हुए बोला - "भूतनी के ले संभाल अपनी अम्मा के गहने और जाते-जाते एक बात कायदे से समझ ले ... 
    हम रस्सी का सांप ही नहीं बल्कि अजगर...मगरमच्छ सब बनाते हैं ... बस असामी बढ़िया होना चाहिए !"
  • दैरोग़ा— मतलब दै, रो चाहें गा....
  • पॉवर की पॉवर । मेरा भारत
  • इसका सम्बन्ध फिर कौनसी पोलिस से हे?
  • यह पक्का लखनऊ का १००% सच्चा मामला है..
    अवार्ड लायक कहानी है , मगर आपको अवार्ड देगा कौन ??
  • award me de dunga bhai
  • बहुत अरसा पहले एक ढाबे पर मैं खाना खा रहा था तो बगल वाली खाट पर एक पुलिस वाला 
    अपने साथी को ये किस्सा सूना रहा था ! सोचा आप लोगों से भी शेयर कर लूँ ... मूल किस्सा 
    काफी लंबा था .. काट-छांट कर इस दशा में ला पाया हूँ ...
  • आज की व्यवस्था /तंत्र की हकीकत वयां करती बेहतरीन प्रस्तुति
  • Nanga kar deya apne hamare rakhwalo ko
  • भैया इनसे तो नंगे भी पनाह मांगते हैं ..... सांप को डस लें तो सांप पानी न मांगे ... 
    इनकी महिमा अपरम्पार !
  • बहुत सच्चाई है इस लेख में वास्तव में यही हो रहा है आज के हिन्तुस्तान में।
  • bahut badiya Prakash Govind ji
  • sach me rassi ka saanp kya kuchh banaa sakte hai..dianasour bhi..
  • DELHI POLICE ही हो सकती है कोई शक नही
  • आप दिल्ली पुलिस कहकर बाकी जगह की पुलिस को उक्सायिये नहीं ! हर स्टेट की पुलिस करिश्माई है .... 
    सब एक से बढ़कर एक   :-)
  • पर सब DELHI POLICE के बाद है
  • बिल्कुल सही ............बस आसामी बढिया होना चाहीय ,मोदी गर चुनाव हार गये होते तो 
    आज कोई जाँच नही होती..............
  • ये भारत के किसी भी पुलिस की कहानी नहीं हो सकती ऐसा होता तो क्यों कर भला नाऊ को 
    उसके गहने वापस मिल जाते बताईये भला
  • मुझे तो मीडिया पुलिस से कहीं आगे नज़र आती है... वो तो बिना रस्सी का नाग बना दे.
  • no need to clarify, good
  • disclaimer ka javab nahi
  • एक खरगोश को जंगले में छोडा गया "आम आदमी" को भेजा गया उसे पकड़ लाने के लिए लेकिन 
    वो खाली हाथ आ गया फिर एक "वकील" को भेजा गया जो पकड़ तो लाया लेकिन ये वही खरगोश 
    है ये साबित करने में उसे १० साल लग गए लेकिन हमारी पुलिस ने एक ही दिन में केस सॉल्व कर 
    दिया ! वो एक बन्दर को पकड़ लाये और इतनी मार लगायी की बन्दर खुद बा खुद कहने लगा की 
    हा मै ही वो खरगोश हु जिसे जंगले में छोड़ा गया था
  • यू पी क्या लखनऊ क्या मै दावे से कह सकता हु सारे हिन्दुस्तान की पुलिस का हाल यही है
  • Saurabh Upadhyay जी डिस्क्लेमर बहुत जरुरी है ... जब बेचारे गरीब नाऊ की दूकान से रिवाल्वर 
    निकल सकता है तो मेरे यहाँ से क्या आप मिसाईल और तोप निकलवाना चाहते हो ?  :-)
  • बहुत खूब!
  • Ajkal police k yahi karname hai.
  • देवेन्द्र बेचैन आत्मा डिस्क्लेमर :
    इस किस्से का सम्बन्ध भारत की पुलिस से नहीं है ... उत्तर प्रदेश से भी नहीं है
    और लखनऊ की पुलिस से तो कतई नहीं है !...यह तो रस्सी साँप से भी जोरदार है।
  • Muqeem Naaz Gada 
    Ak dam haqiqat he bhai
  • ………………. :-)  :-)  :-)
  • ये बहुत पुराना किस्सा है अंग्रेजों के जमाने का। अब तो पुलिस कई गुना शातिर हो गयी है।
  • yah kissa pulis ka naheen vardee ka hai. baharhaal dhardaar vyangya hetu badhaee.
  • Prakash Govind jee likhte ho to daro nahi......darte ho to likho nahi......yar duniya 
    me sacchai bhi koi chij hai.........?
  • Aditi Chauhan hee...hee...hee...hee Govind Sir aap bhi kahan se ye sab likhte hain. 
    hamne Papa ko diya padhne ko , wo bhi khoob hanse  :-)
  • Padam Singh jee ne bhi bahut acchi bat kahi hai....
  • ufff ye police aur unke kaarname ,,,,,khuda bachaaye  :-)
  • hahahahahahahaha...   :-)
  • सुरेश चौधरी sreeman ji west bengal ki police is samay sab se tez hai wah rassi se palita nikalte hain seedha jo aapke sar fatata hai saamp ka kata paani to mange yha par kuchh nhi
  • Raj Bhatia 
    पुलिस वाले की ना दोस्ती अच्छी ना दुशमनी अच्छी.
  • Agree to raj bhatia ji ...... bhugatbhogi jo hun  :-)   
  • यदि वास्तविकता है तो व्यवस्था पर व्यथित होंगे, अगर काल्पनिक है तो व्यक्ति कितना भी गंभीर व्यक्तित्व का स्वामी क्यों ना हो हँसना रोक नहीं पायेगा !!
  • Hahahaha ! Kya khub likha He Sir Ji.. Very Nice
  • बहुत खूब।
  • haan bilkul..iskaa samband kewal nawoo se hai .....
  • मेरा है...इसीलिए भारत महान है....  :-)
  • kya khub hai, sir
  • प्रकाश जी, बेहद अच्छे ढंग से पुलिसिया मनोभाव को प्रदर्शित किया है आपने.। वैसे भी कहा जाता है कि 
    थाना मा मतलब ही होता है था को ना और ना को था बनाना।
  • बहुतसही और सजग चरित्र चित्रण ... ये कुछ भी कर सकते हैं ...
  • Bachpan me padha thik se yad nahi aa raha sayad kabir das ji ka doha hai jisame unhone 
    kaha hai ki samast samudra ko syahi, prithvi ko kagaj aur jangal ke pedon ko lekhani bana 
    lun to bhi guru ki mahima puri likhi nahi ja sakati.
    Aaj ke samay me ye sayad ye sambhav ho jaye par jis pulish (kaha ki pulis ye batane ki himmat 
    mujhame bhi nahi hai ) ki aap bat kar rahe hai usaki mahima to nischit nahi likhi ja sakati.
  • Shekhar Dahiya Saini
    kya baat hai … very nice
  • सत्यबचन !
  • Prakash g - if you feel like you can send me a friends request.
  • Achha hua ki Police ne Akele Naau ko hi pakda .... chaahti to baal kataane aur daadhi 
    banvaane aaye doosre graahakon ko Naau ka Gang batakar unko bhi andar kar deti  :-)
  • कौन सा थाना है इस देश में जहां रस्सी का सांप नहीं बनता ?
  • prakash ji bahut he sacchi lagti hae ye kahani , do sacchai kahani mere paas bhi hain par 
    likh nahi sakta kabhi fone par baat hui to sunaunga
  • बहुत खूब
  • हडप्पा ऐसी सभ्यता थी जिसमें कोई हथियार नहीं मिला ....व्यंग्य लाजवाब.
  • Pavnesh Mishra 
    Yakinan Lajawab . . . .
  • Santosh Mishra 
    sareaam aapne pol khol di !!!
  • waise sach hi to hai aur iska sambandh bharat ke kayee thaano se bhi ho sakata hai .....
    ha ha ha ha
  • Darye prakashji inse
  • जय हो
  • श्रीकान्त मिश्र 'कान्त'
    डिस्क्लेमर :
    इस किस्से का सम्बन्ध भारत की पुलिस से नहीं है ... उत्तर प्रदेश से भी नहीं है 
    और लखनऊ की पुलिस से तो कतई नहीं है !
    ....

    सही कहा आपने ..  :-)
  • Ashish Mittal 
    Good yaar.....
  • कहानी नहीं सच का पुलिंदा है.
  • Adv Nagar 
    रस्सी का साँप बनते हुए देखा भी है
  • बहुत ही बढ़िया कहानी है...
  • nice work ... great creativity bhai
  • Rsshi ka sap na bne esi dar se log rajnetik partiyo, sangthno,sastha se judte he ya phir 
    bagi bante he. [ bhihd me to baagi hote he Daku to parliyament me hote he . 
    film: - pan singh tomar ] ek peda karta he, ek palta he..............

  • Hahahahaha.. Very nice sir
  • It is nice to be vith you on facebook. Think the best for you alvays, dear.
  • आपकी कथा बहुत रोचक है हा आपका डिस्क्लेमर और भी रोचक .........बहुत सुन्दर ....
  • सर जी ।।।।।।
    क्या कहू आपकी ईस कथा के विषय मैं,
    मैं आपके समक्ष अपने विचार रखने को ईस वक्त काबिल नही हूँ।।।।।
    आपने तो भारत का अंधा कानून का सफेद सच सामने ला खड़ा कर रख दिया...।।।।

    ईस कथा की स्क्रिप्ट बहुत से निराले ढंग ओर भारत कि दशा व स्थिति को ध्यान मैं रख कर आपने 
    ईस कथा को रचित किया है.....।
    जो वाकई मैं ला जवाब है, काबिलीय तारीफ के लायक है..।।।
    और कथा का नाम और उसका वर्णन बहुत ही बढ़िया स्वरूप मे किया है...।।।

    और हाँ.......... अंत मैं कथा का सार और डिस्क्लेमर काफी सच्चाईयो से भरा हुआ है....।।।।।।।।।।।।
    हॅट्स ऑफ सर जी  
  • Bikul Satya...  :-)
  • lekhak ko jyada samjhdar nahi kahenge lekin jaate jaate lucknow police ko aajad karke 
    khud rassi se saanp baane se bach gaye hain   :-)
  • *ताजा अपडेट* :
    अभी दोपहर में चौराहे पर एक दरोगा जी मिल गए ... 
    मुझे रोका - "ये फेसबुक पर क्या उछल-कूद चल रही है ?"
    मैंने सहमते हुए कहा - "क्या हुआ सर ?" 
    दरोगा ने आँखें तरेरते हुए हडकाया - "डिस्क्लेमर लगा के बचना चाहते हो..लल्लू समझा है क्या ? 
    क्या मै नहीं जानता कि तूने लखनऊ की पुलिस के बारे में लिखा है ?
    मैंने समझाने की कोशिश की - "नहीं सरकार ऐसा कुछ नहीं है !"
    दरोगा ने दांत पीसे - "शराब के नशे में स्कूटर पर तीन सवारी ? तेरे को अन्दर कर दूँ ?
    मैं चौंका - "मैं तो शराब पीता ही नहीं हूँ और तीन सवारी कहाँ ... मैं तो अकेला हूँ !"
    दरोगा जी दहाड़े - "तूने शराब पी है की नहीं ये तू बतायेगा कि डाक्टर ? 
    और डाक्टर क्या बतायेगा ये मैं जानता हूँ ... समझा ? 
    रही तीन सवारी की बात तो अभी तेरे दो साथी कूद के भागे हैं ! 
    दरोगा ने सिपाही की तरफ देख के पूछा - "इसके दो साथी भागे हैं या नहीं ?
    सिपाही ने तत्काल मुंडी हिलाई - "हाँ सर भागे हैं ...सभी ने देखा"
    दरोगा कुटिलता से मुस्कुराया - "बात समझ में आई"
    मैंने सहमते हुए कहा - "हाँ सरकार समझ गया ... आईंदा ऐसी गलती नहीं होगी !"
  • Kya sir ji yaha satya ai ya.....??
    Ese hi? :-)
  • Jhooth ham kabhi bolte nahi .... aur sach ke kareeb jaate nahi   :-)
  • Ab samjh gaya   :-)
  • bilkul sahi update kiya bilkul aisa hi ho raha hai police or daanku me itna farq hai ki raat me 
    kahi aap akele aa rahe ho or police mil jaye to woh aapse puchhegi ki itni raat me kahan se 
    aa rahe ho loot karke aapki talashi or saara paisa aapka chheen legi or 4 dande lagae gi or 
    agar danku mil jaye or agar aap unse vinti karoge to woh apni had ke bahar chhod kar aaye ge

  • श्रीयुक्त प्रकाश गोबिंद जी,
    आपकी इस कथा के फेस बुक पर 57 शेयर हो चुके हैं.........
    मुझे मिला कर 58 शेयर ! और कुछ कहने के लिए कुछ बचता है क्या ?
  • Wah Kya Bat Hai ,,
  • Lucky Lucky 
    lo kallo baat.
  • Kapil Tulsani 
    shandaar.
  • yeh up ki police se nahi katai nahi,,,waha ki police to do kadam aur aage hai ,,,,,,
  • Sahi hai
  • Ha ha ha
  • कथा तो है ही माशा अल्लाह... और डिस्क्लेमर तो सुभान अल्लाह... बहुत ख़ूब प्रकाशजी...
    इस तरह के किस्से और लिखिये...
  • Indu Puri Goswami pdha. shocked bhi hun aur hansi bhi aa rhi hai. shocked.................
    ye smaj ka sch hai.hm sbhi jante hain. 
    hansi???? 
    nauaa ki buddhi bhrsht hui jo ye swal kr baitha polus wale  :-)
  • पोस्ट दमदार है .......साथ ही पत्रकार चरितनामा भी नजर आया ....वाह वाह
  • इस किस्से का सम्बन्ध भारत की पुलिस से नहीं है ... उत्तर प्रदेश से भी नहीं है
    और लखनऊ की पुलिस से तो कतई नहीं है !//
     hahaha sabse mazedaar to ye panktiyaan hain Prakash ji  :-)  bindaas
  • Salman Zafar 
    intresting sir....lajawaaaab
  • Sagar Sameep 
    Sachi kahani he ye up police ki...
  • bahut hii mazedaar aur sach bhi .
  • hahahahahahahahahahaha
  • हा हा हा हा हा हा हा हा प्रकाश जी हसा हसा के मार डालेंगे धरा ३०2 पक्की
  • Uday Prakash 
    हा .....हा ....हा ! धारा ३०४ ! ग़ैर-इरादतन क़त्ल ! सुपर्ब !
  • bhai wah
  • excellent
  • Ek dum mast   :-)
  • wah bhai, govind ji bahut hi shandar vyangya. badhai,,
  • जी डिसक्‍लेमर ही काफी है....हा हा

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