सोमवार, जून 13, 2016

सभ्य समाज में कहाँ है कोई दलित ?


एक आम आदमी सुबह जागने के बाद दाँत ब्रश करता है, नहाता है, कपड़े पहनकर तैयार होता है, अखबार पढता है, नाश्ता करता है, घर से काम के लिए निकल जाता है.....बाहर निकलकर रिक्शा करता है, फिर लोकल बस या ट्रेन पकड़कर ऑफिस पहुँचता है, वहाँ पूरा दिन काम करता है, साथियों के साथ चाय पीता है, शाम को वापिस घर के लिए निकलता है.घर के रास्ते में एक सिगरेट फूँकता है, बच्चों के लिए टॉफी, बीवी के लिए गजरा लेता है, मोबाइल में रिचार्ज करवाता है, और अनेक छोटे मोटे काम निपटाते हुए घर पहुँचता है.... 
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अब आप बताइये कि उसे दिन भर में कहीं कोई दलित मिला ??  क्या उसने दिन भर में किसी दलित पर कोई अत्याचार किया ?? 
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उसको जो दिन भर में मिले, वो थे अख़बार वाले भैया, दूध वाले भैया, रिक्शा वाले भैया, बस कंडक्टर, ऑफिस के मित्र, आंगतुक, पान वाले भैया, चाय वाले भैया, टॉफी की दुकान वाले भैया, मिठाई की दूकान वाले भैया ..... जब ये सब लोग भैया और मित्र हैं तो इनमें दलित कहाँ है ? 
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क्या दिन भर में उसने किसी से पूछा कि भाई, तू दलित है या सवर्ण ? अगर तू दलित है तो मैं तेरी बस में सफ़र नहीं करूँगा, तुझसे सिगरेट नहीं खरीदूंगा, तेरे हाथ की चाय नहीं पियूँगा, तेरी दुकान से टॉफी नहीं खरीदूंगा ...... क्या उसने साबुन, दूध, आटा, नमक, कपड़े, जूते, अखबार, टॉफी, गजरा खरीदते समय किसी से ये सवाल किया था कि ये सब बनाने और उगाने वाले दलित हैं या सवर्ण ? 
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आम तौर पर हम सबके साथ ऐसा ही है, शायद ही कोई आजकल के युग में किसी की जाति पूछकर तय करता है कि फलां आदमी से कैसा व्यवहार करना है. 
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हम सबकी फ्रेंडलिस्ट में न जाने कितने दलित होंगे....क्या आज तक किसी ने कभी भी उनकी पोस्ट लाइक करने से पहले, या उसपर कमेन्ट करने से पहले उनकी जाति पूछी ? क्या किसी से कभी कहा कि तुम दलित हो इसलिए मेरी पोस्ट पर कमेन्ट मत करो ? 
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जब रोजमर्रा की जिंदगी में हमसे मिलने वाले दलित नहीं होते, तो उनमें से कोई मरते ही दलित कैसे हो जाता है ?? 
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जाति धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों को नकार दीजिये.......ये हमें असंगठित कर के हम पर राज करना चाहते हैं......सभी जाति, धर्म के , हम भारतीय मिलकर इन्हें खदेड़ दें. 
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संगठित हो जाइये.....हम सब भारतीय हैं.

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