शुक्रवार, जुलाई 19, 2013

न्याय (कविता)










न्यायाधीश जा चुका है
वकील जा चुके हैं
दर्शक जा चुके हैं
मुंसिफ, पेशकार, और चपरासी तक जा चुके हैं
ख़त्म हो चुकी है बहस
फैसला हो चुका है

अपराधियों को ले जा चुकी है पुलिस
अदालत एकदम खाली है
सिर्फ लोगों के जूते के साथ आई धूल
अदालत के फर्श पर बची है

उस धूल में किसी की जेब से गिरा
एक सिक्का चमक रहा है !!!


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1 टिप्पणी:

  1. आज के न्याय पैसों के दम पर ही तय होते हैं
    सुन्दर कविता

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आप की टिप्पणी हमारा हौसला' !!

संवाद से दीवारें हटती हैं, ये ख़ामोशी तोडिये !!
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